स्वयं सहायता समूह से मिल रही मदद बुलंदशहर के अनूपशहर (Anoopshahar) में स्थित परदादा—परदादी ग्रुप आई विलेज स्वयं सहायता समूह संचालित करता है। लॉकडाउन से पहले यहां कोट कवर बना करते थे। जो ब्लैकबैरी (Blackberry) जैसी ब्रान्डेड कंपनी को सप्लाई किए जाते थे। लॉकडाउन के बाद यहां मास्क बनाये जाने लगे हैं। यहां आए कई प्रवासी मजदूरो की पत्नियां मास्क बनाने में जुटी हुई हैं। इसके जरिए ये अपने परिवार का भरण— पोषण कर रही हैं।
रोज बना लेती हैं 100—120 मास्क आई विलेज स्वयं सहायता समूह पहले से ही लगभग 5000 लोगों को रोजगार दे रहा है। अब लॉकडाउन में जब बाजार बंद है तो यहां कपड़े के ये मास्क (Mask) बनाने शुरू कर दिए गए। इसके जरिए बाहर से आए 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार का जरिया मिल गया। यहां काम कर रही नीलम शर्मा की मानें तो उनके पति दिल्ली में गाड़ी चलाने का काम करते थे मगर लॉकडाउन ें काम बंद हो गया। इसके बाद दिल्ली से बुलंदशहर लौटे। यहीं वह स्वयं सहायता समहू से जुड़कर मास्क बनाने में जुट गईं। पति के पास इन दिनों कोई काम नहीं है। मास्क बनाकर ही नीलम परिवार का भरणपोषण कर रही हैं। वह रोजाना 100 से 120 मास्क बना लेती हैं। यहां से उनको रोजाना 200—250 रुपये मिल जाते हैं।
एक मास्क के मिलते हैं 5 रुपये ऐसी ही मिलती जुलती कहानी उषा की भी है। उनका पति अनूपशहर में ही ठेला लगाता था, मगर लॉकडाउन में वह भी बंद हो गया। अब उषा भी मास्क बनाकर घर चला रही हैं। संजना का पति भी दिल्ली में काम करता था। लॉकडाउन के बाद न काम रहा, न राशन और न ही सरकारी मदद। वह अनूपशहर आ गईं और यहां मास्क की फिनिशिंग कर परिवार के भरण पोषण में जुट गई हैं। स्वयं सहायता समहू की कार्यकत्री पुष्पा की मानें तो आई विलेज से कपड़ा लेकर वह घर में स्वयं सहायता समहू चला रही हैं। रोजाना 150-200 मास्क बनाकर अच्छी आमदनी कर लेती हैं। उनको एक मास्क के 5 रुपये मिल जाते हैं।
सरकार से मांगी मदद आई विलेज संचालिका आर्या का कहना है कि पहले यहां कोट कवर व जूट बैग बनते थे। ये अब बंद हो गए हैं। अब यहां कपड़े के मास्क बनाकर 200 परिवारों को आत्मनिर्भर बनाया गया है। उन्होंने रोज 1000 मास्क के साथ शुरुआत की थी। अब वे करीब 6 हजार पीस रोज बना लेते हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि यदि सरकारी डिमांड व आर्थिक मदद मिले तो वे बड़े पैमाने पर यह काम कर सकते हैं। वे अमेजॉन पर भी लिस्टेड हैं।