आदर्श ग्राम योजना के तहत सांसद भोला सिंह ने जिला मुख्यालय से करीब 42 किलीमीटर दूर गंगा नदी के किनारे बसा नग्ला भोपतपुर गांव को गोद 2014 में लिया था। वहीं लोगों का कहना है कि इसके बाद सांसद ने गांव के विकास को लेकर कोई रुचि नहीं दिखाई। लिहाजा गांव की जो बदहाली थी वह वैसे ही रह गयी।
भोपतपुर गांव की आबादी मजरा भोपतपुर समेत करीब 5 हजार है। लोगों का कहना है कि भोपतपुर गांव जनसमस्याओं से बेजार है। सड़क, बिजली, पानी, पेयजल और शिक्षा की दुश्वारियों से जूझ रहे इस गाँव में विकास की गति बेहद धीमी रही है। जिला मुख्यालय से दूसरे छोर पर होने के कारण महीनों-महीने इस गाँव में अफसरों की आमद तक नहीं होती। समस्याओं को अपनी नियति मान चुके गाँववालों को सांसद डॉ0 भोलासिंह से बहुत उम्मीदें लगाई हुई थी, लेकिन गांव में विकास के नाम पर पिछले 5 वर्षों में कुछ नहीं हुआ।
कच्ची छत, बिजली नहीं जब टीम नगला भोपतपुर गांव में घूमे तो वहां पर संतोष नाम के एक किसान ने बताया कि हम एक झोपड़ी वाले मकान में रहते हैं। जिस पर हमारी कच्ची छत है। बारिश आने पर यह टपकती है और हमें किसी भी तरीके की सरकार से कोई योजना का लाभ नहीं दिया गया है। परिवार में 5 लोग हैं, घर में बिजली का कनेक्शन भी नहीं है। शौचालय बनवा दिया गया है। जो अभी आधा अधूरा ही है। दो बहन हमारी हैं जो अभी भी शादी लायक हैं। मगर सांसद जी ने एक गांव गोद लिया था। तो हम सोच रहे थे कुछ यहां पर विकास होगा। मगर गांव में तो बस एक पानी की टंकी लगी है और उसमें भी पानी नहीं आता। सांसद बनने के बाद वह केवल गांव में दो बार ही आए हैं।
सड़क, बिजली और पेयजल इस गाँव में सड़क के नाम पर पूरे गाँव की मुख्य सड़क तो सीसी हो गई है, लेकिन गलियां केवल ईटों के खरंजों से जुड़ती हैं। लोगों का कहना है कि बरसात के समय गाँव की गलियों में पानी भर जाता है। जिसके बाद रास्ते और नालियों में फर्क करना नामुमकिन हो जाता है। ग्रामीण परमसिंह कहते हैं कि बच्चे और महिलाऐं और बड़े-बुजुर्ग तो इन दिनों में घरों से निकलना बंद कर देते हैं। भोपतपुर ग्राम को नग्ला भोपतपुर (इसी ग्रामसभा का छोटा गाँव) के बीच तलवार रजवाहा है। लेकिन आजादी के बाद से आज तक यहाँ इस रजवाहे को पार करने के लिए छोटे से पुल की व्यवस्था तक नहीं हो सकी है। गाँव के लोग पानी में होकर रास्ता पार करके दूसरे गाँव तक पहुँचते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि बिजली की समस्या जिले के दूसरों गाँव की तरह ही है। उज्ज्वला योजना, जनधन योजना, सौभाग्य योजना, मुद्रा योजना के नाम भी यहां के मतदाताओं की समझ से परे हैं। पूरे गाँव में कहीं स्ट्रील लाइट नहीं हैं। इसके अलावा गाँव के बीच से गुजर रही हाईटेंशन बिजली लाइन गाँववालों के लिए हमेशा खतरा बनी रहती है। पूरे गाँव में जब अधूरा विद्युतीकरण हुआ। तभी के तार लगे हुए हैं और आज तक नहीं बदले गये हैं।
इतनी बड़ी आबादी में केवल 20 सरकारी हैंडपंप हैं। बाकी लोग खुद के अपने हैंडपंपों से पानी लेकर अपना काम चलाते हैं। अप्रमाणिक हैंडपंपों में पीने का पानी दूषित होने की वजह से गाँव के लोग पेट संबधी विकारों से ग्रसित रहते हैं।
स्कूल के अभाव से जूझता गाँव शिक्षा के साधनों में इस गाँव में केवल एक जूनियर हाईस्कूल और दो प्राइमरी पाठशालाऐं हैं। आठवीं कक्षा के बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को गाँव से बाहर जाना पड़ता है। लोगों का कहना है कि ऐसे में गरीब परिवारों की बेटियां शिक्षा से महरूम रह जाती हैं। कालेज और डिग्री कालेज इस गाँव से 10 किलोमीटर दूर अनूपशहर और 13 किलोमीटर दूर डिबाई में स्थित है। लेकिन यहाँ गाँव के बच्चों का एडमीशन कराना अपने आप में बड़ी कवायद होती है।
वहीं ग्रामीण होराम सिंह का कहना है कि गाँव के बाहर बने दूसरे तालाब तक पहुँचने में ग्रामीणों को आसानी नहीं होती और इस तालाब का गाँववालों के लिए कोई उपयोग भी नहीं है। हैरत की बात है कि इतनी बड़ी आबादी के बीच गाँव के बच्चों के खेलने का कोई पार्क नहीं है। वहीं केवल 10 फीसदी घर ही ऐसे हैं जहाँ के लोग अपने शौचालयों में शौच के लिए जाते हैं। बाकी लोगों के शौचालय या तो कागजों में बने है या फिर सरकारी योजनाऐं उन लोगों के घरों तक पहुँची नहीं है। पूर्व प्रधान श्रीमती रेनूसिंह बताती है कि आबादी के लिहाज से इस गाँव को कम से कम पाँच सौ शौचालयों की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव गाँव के दूर-दूर तक कोई भी अस्पताल नही है। इस गाँव के लोग आपातकाल में केवल झोलाछाप डाक्टरों के सहारे रहते है। आमतौर पर गाँववाले इलाज के लिए अनूपशहर, डिबाई या फिर जिला मुख्यालय जाते है। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण इस गाँव के बच्चों को स्वास्थ्य स्वस्थ बच्चों जैसा नही है। समय से इलाज न मिल पाने की वजह से बड़े-बुजुर्गों को परेशानियां बनी रहती है। महिलाओं के प्रसव के लिए एकमात्र सहारा 42 किलोमीटर दूर जिला महिला अस्पताल है।
सरकारी योजनाओं की हकीकत सरकारी पैंशन योजनाओं की बात करें तो करीब आधे पात्रों को ही पैंशन मयस्सर है। ग्रामीण पवन का कहना है कि बाकी आधे ग्रामप्रधान से लेकर ब्लाक के अफसर और जिलाधिकारी के कार्यालयों पर अपनी अर्जियां लिए खड़े रहते है। पूर्वप्रधान रेनूसिंह का कहना है कि सरकारी विभागों को भेजी गयी अर्जियों पर काम नही होता। काफी प्रयासों के बाद उन्होने गाँव के कई लोगों की पैंशन दिलाई है। लेकिन सरकारी मानक बहुत कम है और पात्र बहुत ज्यादा।
कैमरे पर आने से बचते दिखे सांसद सांसद से कई बार इस बाबत बात करने की कोशिश की गई लेकिन कैमरे पर आने पर आनाकानी कर बार बार आस्वाशन देते रहे हैं। कभी कहते हैं कि सुबह मिलूंगा, कभी शाम को मिलूंगा। कई बार संपर्क करने के बाद भी उन्होंने व्यस्त होने की बात कही।