बुलंदशहर

जन्माष्टमी विशेष: भगवान श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी का बुलंदशहर से किया था हरण

द्वापर युग की भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा के बारे में जानिए

बुलंदशहरAug 13, 2017 / 06:16 pm

Rajkumar

राहुल गोयल,
बुलंदशहर। 14 अगस्त को भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी आस्था व उल्लास के साथ मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था। इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है।

आज हम आपको बताएंगे भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह से जुड़ी हुई एक पौराणिक कथा के बारे में। यह कथा द्वापर युग की है। किंवदंतियों के अनुसार बुलंदशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर नगर था। कुण्डिन नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे जिनके नाम क्रमशरू रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहन थीं रुक्मिणी।

मां अवंतिका से रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पति के रुप में मांगा था

राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ कुण्ड (रुक्मिणी कुण्ड) में स्नान करके माता अवंतिका देवी के मंदिर में जाकर माता अवंतिका देवी का नाना प्रकार से पूजन करती थीं। पूजन करने के पश्चात् प्रतिदिन माता भगवती अवंतिका देवी से प्रार्थना करती थीं, ‘हे जगतजननी! हे करुणामयी मां भगवती!! मुझे श्रीकृष्ण ही वर के रूप में प्राप्त हों।’

रुक्मी ने किया था कृष्ण से विवाह का विरोध

राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती हैं तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया।

krishna and rukmini marriage

रुक्मिणी ने ऐसे भगवान कृष्ण को भेजा संदेश

राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास द्वारिका संदेश भेजा कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरन चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है। इसलिए वह वहां आकर उसकी रक्षा करें। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार उसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण कर लिया। जब वह मंदिर में पूजन करने गयी थीं।

यहां हुआ था कृष्ण से रुक्मी का युद्ध

जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बैठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासंध तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाओं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय भगवान श्रीकृष्ण की मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर वहां आ गये और तब घोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएं हार गयीं। उसी समय से कुण्डिनपुर का नाम अहार पड़ गया।

krishna and rukmini marriage

शक्ति पीठ के रूप में विराजमान है मां अवंतिका देवी

अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महत्व एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है। पृथ्वी पर जितनी भी सिद्धपीठ हैं वह सब सतीजी के अंग हैं, लेकिन यह सिद्धपीठ सतीजी का अंग नहीं है। कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर जगत जननी करुणामयी माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदम्बा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी’ के नाम से प्रतिष्ठित हैं।

ये हैं मान्यता

अवंतिका देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देशी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था और बाद में इसी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह भी हुआ था।

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