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जंजीरों में कटे जीवन के सात बसंत

locationबूंदीPublished: Sep 28, 2016 11:18:00 am

Submitted by:

gaurav khandelwal

बांदीकुई हर इंसान जीवन में आजादी चाहता है और स्वतंत्र रहकर कार्य करना चाहता है। फिर चाहे वह सामान्य व्यक्ति हो या मनोरोगी। लेकिन जब कोई मनोरोगी लोगों को नुकसान पहुंचाए और परिजन आर्थिक तंगी के कारण उसका उपचार नहीं करा पाए तो उसे या तो मजबूरन कमरे में बंद करना पड़ता है या फिर जंजीरों में बांधकर रखा

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बांदीकुई हर इंसान जीवन में आजादी चाहता है और स्वतंत्र रहकर कार्य करना चाहता है। फिर चाहे वह सामान्य व्यक्ति हो या मनोरोगी। 

लेकिन जब कोई मनोरोगी लोगों को नुकसान पहुंचाए और परिजन आर्थिक तंगी के कारण उसका उपचार नहीं करा पाए तो उसे या तो मजबूरन कमरे में बंद करना पड़ता है या फिर जंजीरों में बांधकर रखा जाता है। 
ऐसा ही कुछ हो रहा है माधोगंज मण्डी के पीछे निवासी मानसिक रोगी महेश सोनी (38) के साथ। मानसिक बीमारी व परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते उसके जीवन के 7 बसंत जंजीरों की रुकवाट में कट गए। परिजन जंजीरों में बंधे अपने पुत्र की हालत देखकर बहुत दुखी होते भी हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के आगे बेबस नजर आते हैं।
 ऐसे में उन्हें अपने लाल को ना चाहते हुए भी जंजीरों के बंधन में रखना पड़ता है। परिजनों ने उपखण्ड अधिकारी हिम्मतसिंह को ज्ञापन सौंपकर पुत्र के उपचार के लिए सरकारी सहायता दिलाने की मांग की है। 
बीमारी ने बनाया मानसिक रोगी 

पीडि़त के भाई राजेश सोनी ने बताया कि उसका भाई महेश जन्म से सही था। शुरुआत में वह पढऩे में भी होशियार था। इसके बाद वर्ष 1998 में वह बीमार हो गया और उसके टायफाइड हो गया। 
उसके बाद से ही वह ठीक नहीं हुआ। बीमारी से राहत मिलने के बाद उसकी मानसिक स्थिति कमजोर होने लग गई। वह रात को चिल्लाने लग गया। कभी बच्चों को पीटता तो कभी घर में रखे सामानों को तोड़ देता। इसके बाद जयपुर, अलवर सहित कई चिकित्सालयों में उसका उपचार भी कराया, लेकिन राहत नहीं मिली।
 कॉलोनीवासियों के विरोध के कारण उसे वर्ष 2009 में ना चाहते हुए भी जंजीरों में बांधना पड़ा। उन्होंने बताया कि अब तक उपचार पर करीब पांच लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं। जिसका कर्जा भी नहीं उतर पाया है।
ऐसे में अब आर्थिक तंगी के कारण उपचार करना मुश्किल हो गया है। प्रशासन यदि सरकारी योजनाओं के तहत उसका उपचार करा दे तो राहत मिल सकती है। पिता मोहनलाल सोनी ने बताया कि उनके पास रोजगार की भी कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इतना महंगा ईलाज कराना उसके वश में नहीं है।

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