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सारंगी के सुरों के अब नहीं रहे कद्रदान, शिवजी के ब्याह का गायन सुन ठहर जाते थे कदम

locationबूंदीPublished: Jul 16, 2019 12:56:53 pm

Bundi news, Bundi music news,Folk artists, Instrumental instruments,Folk singer: जिनको मंच मिल जाता है वह ऊंचाइयां छू लेते है। जिनको अपनी कला दिखाने का मौका नहीं मिलता उन लोक कलाकारों को फाकाकसी का सामना करना पड़ता है।

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सारंगी के सुरों के अब नहीं रहे कद्रदान, शिवजी के ब्याह का गायन सुन ठहर जाते थे कदम

नैनवां. जिनको मंच मिल जाता है वह ऊंचाइयां छू लेते है। जिनको अपनी कला दिखाने का मौका नहीं मिलता उन लोक कलाकारों को फाकाकसी का सामना करना पड़ता है। कद्रदान नहीं रहने से इन वाद्य यंत्रों की ताल पर सुर देने वाले भी गिनती के ही रह गए हंै।
कद्रदानों की कमी से लोक गायकी की सिद्धहस्ती प्राप्त होने के बाद भी इस कला को छोडकऱ आजीविका के लिए अन्य काम धंधों में लग गए, लेकिन आजीविका नहीं चलने के बाद भी सारंगी वादक शोजी नाथ ऐसा बिरला कलाकार है जो इसे अभी तक इसे अंगीकार किए हुए है। बूंदी जिले के नैनवां उपखंड के आंतरदा गांव निवासी गायकी के धनी शोजी नाथ सारंगी पर घुंघरु बंधे गज चलाकर शिवजी के ब्याह को अपना सुर देकर सुरों की महफिल सजाता है। तब चलते कदम ही ठहर जाते हैं। इस कला से आजीविका नहीं चल पाती फिर भी इसे जिंदा रखे हुए हैं।
बाल्यकाल में ही शोजी नाथ ने सारंगी को थाम लिया था। पिता हीरानाथ से ही यह कला सीखी। पिता ही उसके गुरु रहे हैं। पिता बूंदी राजघराने में प्रसिद्ध सारगी वादक रहे है। राज दरबार की संगीत महफिल में सारंगी के सुर निकालते तो दरबार में बैठे दरबारी वाह-वाह कर उठते थे। जिंदगी के 60 बसंत पूरे करने के बाद भी मीठी आवाज गायकी की साधक बनी हुई है।
शोजी नाथ कहता है कि सारंगी के कद्रदान नहीं रहने से अब गांवों में भजन-कीर्तनों में ही सारंगी के सुरों पर शिवजी का ब्याह, भैरूजी व बालाजी के साथ लोक देवताओं की स्तुति गाकर आजीविका चला रहा है। पहले कद्रदान थे तो आजविका का भी कोई संकट नहीं था। उसका खानदानी धंधा रहा है। इससे आजीविका नहीं चलने से परिवार के अन्य लोगों ने तो इसे छोड़ दिया। जिन वाद्ययंत्रों से सुर निकालकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं उन वाद्ययंत्रों का भी जमाना लद गया है। शोजीनाथ को आवेदन के बाद भी पेंशन नहीं मिल रही।

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