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बांध निर्माण की कछुआचाल…यह पड़ रहा असर..

locationबूंदीPublished: Jun 14, 2021 10:17:15 pm

जिले की बहुप्रतीक्षित गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना इस मानसून सत्र में भी पूरी होती नहीं दिख रही। परियोजना की कुल लागत अब बढकऱ 263 करोड़ रुपये हो गई। जबकि वर्ष 2003 में इसकी प्रस्तावित लागत 81 करोड़ रुपए आंकी गई थी। अब साल दर साल बजट बढ़ रहा, लेकिन बांध के टूटे हुए हिस्से का काम पूरा नहीं हो रहा।

बांध निर्माण की कछुआचाल...यह पड़ रहा असर..

बांध निर्माण की कछुआचाल…यह पड़ रहा असर..

बांध निर्माण की कछुआचाल…यह पड़ रहा असर..
इस मानसून सत्र का भी नहीं रुकेगा बांध में पानी : टूटे हुए हिस्से का मात्र 23 मीटर निर्माण कार्य पूरा हुआ
बूंदी जिले की बहुप्रतीक्षित गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना
परियोजना की कुल लागत अब बढकऱ हुई 263 करोड़ रुपये, 81 करोड़ रुपए आंका था प्रस्तावित खर्चा
नागेश शर्मा, हेमंत शर्मा
patrika.com
बूंदी. नमाना.
जिले की बहुप्रतीक्षित गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना इस मानसून सत्र में भी पूरी होती नहीं दिख रही। परियोजना की कुल लागत अब बढकऱ 263 करोड़ रुपये हो गई। जबकि वर्ष 2003 में इसकी प्रस्तावित लागत 81 करोड़ रुपए आंकी गई थी। अब साल दर साल बजट बढ़ रहा, लेकिन बांध के टूटे हुए हिस्से का काम पूरा नहीं हो रहा। या यों कहें कि सरकारें ही इसे पूरा करने की ठोस मंशा नहीं दिखा रही। बांध भरने के बाद वर्ष 2010 में टूट गया था। बांध के क्षतिग्रस्त हिस्से का अभी मात्र 23 मीटर निर्माण कार्य ही पूरा हुआ, जबकि मानसून को आने में मात्र 10-15 दिन शेष रह गए। जबकि जिम्मेदारों ने बीते वर्ष नवम्बर माह में इस मानसून सत्र का पानी रोकने का दावा किया था। अब किसानों को फिर से बांध का पानी रुकने का इंतजार करना पड़ेगा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 15 अगस्त 2010 को गणेशी के खाळ की जगह से बांध की दीवार का करीब 150 फीट के लगभग का हिस्सा पानी के साथ बह गया था। 8 वर्ष बाद वर्ष 2018 में बांध का पुनर्निर्माण शुरू हुआ था। उस समय अभियंताओं ने इसके 3 वर्ष में निर्माण कार्य को पूरा कर पानी रोकने की समय सीमा निर्धारित की थी, लेकिन समय सीमा में ठेकेदार अपना निर्माण कार्य पूरा नहीं कर पाया। जिससे इस मानसून सत्र में तो पानी रुकना संभव नहीं रहा।
150 मीटर का भी होगा नया निर्माण
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की टीम ने बांध के अंतिम छोर से 150 मीटर तक के बांध की दीवार को फिर से जमीन से नया निर्माण करने के निर्देश दिए हैं। 3 महीने पहले सीडब्ल्यूसी की टीम ने बांध का निरीक्षण किया था। उस समय अंतिम छोर पर बांध के कार्य को सही नहीं पाया गया। उसके बाद सीडब्ल्यूसी की टीम व जयपुर के जल संसाधन अभियंताओं की टीम ने अंतिम छोर से डेढ़ सौ मीटर तक के निर्माण कार्यों को नया करने के निर्देश दिए थे। सीडब्ल्यूसी की टीम का मानना था कि वर्तमान का निर्माण कार्य एक बरसात भी सहन नहीं कर पाता। इससे उसे दुबारा से नया निर्माण कराने की बात कही।
पेयजल योजना भी है प्रस्तावित
परियोजना से बूंदी पंचायत समिति के गांव में पेयजल उपलब्ध कराने की योजना भी प्रस्तावित है। राज्य सरकार ने इसके लिए बांध स्थल पर फाउंडेशन तैयार कराने के लिए 5 करोड़ रुपए से कार्य शुरू करा दिया है। बूंदी विधायक अशोक डोगरा ने राज्य में भाजपा सरकार के दौरान बूंदी पंचायत समिति के 200 गांव में पेयजल उपलब्ध कराने की योजना स्वीकृत कराई थी। सरकार ने इसके लिए बजट भी पारित कर दिया था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस पर एक समीक्षा कमेटी बनाकर प्रस्तावित पेयजल योजना को अधरझूल में लटका दिया। इसके बाद बूंदी विधायक ने विधानसभा में प्रश्न उठाया तो सरकार ने वापस योजना को मंजूरी देते हुए टेंडर देने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की।
बढ़ रही लागत
वर्ष 2003 में बांध की प्रस्तावित लागत 81 करोड़ आंकी गई थी, जो वर्ष 2009 में बढकऱ 147 करोड़ रुपये हो गई। फिर सरकार ने टूटे हुए हिस्से के लिए 54 करोड़ रुपए दिए। अब लागत 263 करोड़ रुपए तक जा पहुंची। जो अभी और बढ़ेगी।
शुरुआत में ही आई बाधाएं
इस परियोजना का लाभ 18 वर्ष बाद भी क्षेत्र के काश्तकारों को नहीं मिल पाया। 9 सितम्बर 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परियोजना का शिलान्यास किया था। उस समय 2 वर्ष निर्माण कार्य चला। बाद में वन विभाग ने अपनी भूमि होने का दावा करते हुए बांध का निर्माण कार्य रोक दिया। उस समय भी बांध का निर्माण कार्य 1 वर्ष तक बंद करना पड़ा था। उसके बाद मिट्टी को लेकर समस्या पैदा हो गई। उस समय बांध का निर्माण कार्य कर रही शेखर कंस्ट्रक्शन कंपनी को मिट्टी उपलब्ध करने में 1 वर्ष का समय लग गया। जिसके चलते 2 वर्ष तक निर्माण कार्य नहीं हो सका। 2010 में पानी रोकना शुरू किया। पानी रोके हुए कुछ दिन ही हुए थे कि 15 अगस्त को बांध टूट गया। इसके बाद राज्य सरकार ने बांध के टूटने को लेकर एक कमेटी बनाकर दो बार निर्माण कार्य शुरू कराने के निर्देश दिए, लेकिन कमेटी को निर्णय करने में ही 4 वर्ष से अधिक समय लग गया। फिर भी राज्य सरकार की कमेटी पूरा निर्णय नहीं कर पाई। इसके बाद राज्य सरकार की कमेटी ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय से बांध निर्माण के कार्य को लेकर मदद मांगी। वहां से सीडब्ल्यूसी की टीम 2015 में टूटे हुए हिस्से का निरीक्षण करने पहुंची। इसके बाद 1 साल तक सीडब्ल्यूसी की टीम ने परियोजना स्थल पर कई निरीक्षण किए। सीडब्ल्यूसी की टीम ने वर्ष 2016 में निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति दी, लेकिन उसके बाद क्षतिग्रस्त बांध का निर्माण करने के लिए कोई ठेकेदार तैयार नहीं हुआ। वर्ष 2018 में कोटा की एक कंपनी ने बांध का निर्माण कार्य शुरू करने का काम हाथ लिया।
दिल्ली से बांध की स्वीकृति का पत्र लेकर ही लौटा था
गरड़दा (लतारिया) बांध बने इसके लिए वर्ष 1977 में पहली आवाज उठाई थी। तब सिंचाई मंत्री ने इसके लिए सर्वे कराया था, लेकिन इसकी जगह को बांध के अनुरूप नहीं मानते हुए नई जगह की तलाश करने की बात कही। फिर 1993 में फिर मांग उठाई, तो बांध की ठोर तय हुई और इससे पचास गांवों को सिंचाई के लिए पानी देने की बात मानी। इस वर्ष में लतारिया बांध बनने का रास्ता साफ हुआ, लेकिन मंजूरी नहीं मिली। फिर वर्ष 1998 में मामला विधानसभा में उठाया। जगह-जगह किसानों के साथ बैठकें की। तब मुख्यमंत्री ने इसे बनाने का भरोसा दिया। दिल्ली गए, जहां से बांध की स्वीकृति का पत्र लेकर ही लौटा था। 1998 में तत्कालीन सिंचाई राज्यमंत्री वी.पी. सिंह ने खुद बूंदी के सर्किट हाउस में आकर इसकी मंजूरी का पत्र सौंपा था, तब सैकड़ों किसानों के चेहरों पर खुशी थी। इसके बाद की सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और लंबे संघर्ष का अब तक किसानों को फायदा नहीं मिल रहा। सरकार इसके समय पर पुनर्निर्माण को लेकर उच्च
स्तरीय समिति का गठन करें। यह बांध सैकड़ों किसानों की लाइफ लाइन बनेगा।
ओमप्रकाश शर्मा, भाजपा नेता
गरडदा बांध की नींव रखी थी, तब किसानों को अपनी फसलों को पानी देने की एक आस बंधी थी। किसानों का सपना था कि देर से ही सही पर क्षेत्र में बांध तो बना। लेकिन बांध को टूटे 10 वर्ष से अधिक हो गए। अभी तक इसका काम ही पूरा नहीं हुआ। किसानों को उनका हक नहीं मिल रहा।
चमकोर सिंह, किसान, नमाना
गरड़दा बांध का निर्माण सितम्बर 2003 में श्राद्ध पक्ष में शुरू हुआ था। योजना को 18 साल हो गए लेकिन पूरा नहीं हुआ। बांध की नहरें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। सरकार ने नहरों के लिए तो बजट ही जारी नहीं किया। ऐसे में किसानों को इसका पानी कब मिलेगा।
श्योजी लाल मीणा, किसान नेता, श्याम
गरड़दा बांध के बनने से क्षेत्र के किसानों को फायदा होगा, लेकिन परियोजना 18 वर्ष बाद भी पूरी नहीं हुई। इस परियोजना की स्वीकृति के लिए किसानों ने लंबा संघर्ष किया था, लेकिन इस तरफ किसी सरकार ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। दोनों ही दलों की सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। जबकि बांध पूरी तरह बन चुका था। गुणवत्ता का अभाव रहा कि बांध भरने बाद पहले ही वर्ष में टूट गया। नहरों को भी बांध के साथ ही बनाया जाना चाहिए।
संदीप पुरोहित, किसान संघर्ष समिति, जिलाध्यक्ष, बूंदी
बांध की सिर्फ लागत बढ़ रही, काम नहीं। लाखों से करोड़ों की लागत हो गई, लेकिन धरातल पर किसानों को फायदा मिलना शुरू नहीं हुआ। सिर्फ विभाग के अधिकारी मनमर्जी कर रहे। सरकार की उदासीनता के चलते बांध की लागत 4 गुना तक बढ़ गई। यह परियोजना कब पूरी होगी यह अब भी स्पष्ट नहीं हो रहा।
बद्री लाल मालव, किसान, सुंदरपुरा
इस मानसून सत्र में टूटे हिस्से का निर्माण कार्य पूरा करने की उम्मीद थी, लेकिन सीडब्ल्यूसी की टीम ने बांध स्थल पर कार्य बढ़ाने के बाद टूटे हुए हिस्से का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका। अभी तो मात्र 23 मीटर ही निर्माण कार्य पूरा हुआ। जिससे इस मानसून सत्र में बांध में पानी नहीं रोका जा सकता। अगले सत्र में पानी रोकने की पूरी संभावना रहेगी। बांध का निर्माण कार्य पूरा होने में अभी 2 वर्ष तक का समय लग सकता है। निर्माण कार्य को लेकर कोई कोताही नहीं बरती जा रही।
राजीव विजय, अधिशासी अभियंता, गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना, बूंदी

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