बूंदीPublished: Oct 19, 2020 06:59:26 pm
पंकज जोशी
राष्ट्रीय राजमार्ग 148 डी के जजावर बाइपास पर स्थित झैठाल माता मंदिर की अनूठी कहानी है। यहां कोई भी सदस्य तम्बाकू का सेवन नहीं करता है।
धूम्रपान करना तो दूर छूना भी मानते हैं माता का श्राप
धूम्रपान करना तो दूर छूना भी मानते हैं माता का श्राप
जजावर कस्बे के झैठाल माताजी की अनूठी कहानी
जजावर. राष्ट्रीय राजमार्ग 148 डी के जजावर बाइपास पर स्थित झैठाल माता मंदिर की अनूठी कहानी है। यहां कोई भी सदस्य तम्बाकू का सेवन नहीं करता है। लोगों में डर कहें या आस्था, लेकिन गांव के करीब चार सौ सदस्य इन बुरी चीजों से दूर ही रहते हैं। मंदिर के पुजारी (भोपा) इस परम्परा को जीवित किए हुए हैं। मौजूदा दौर में जहां बच्चे, बुजुर्ग ,युवा से लेकर महिलाएं तक धूम्रपान के आदी हो रहे हैं, वहीं झैठाल माताजी के पुजारी (भोपा) अपने पूर्वजों की परम्परा के अनुसार तम्बाकू युक्त सामग्री को सेवन करना तो दूर छुते तक नहीं हैं। पुजारी इसे माता का श्राप मानते हैं।
मंदिर का इतिहास
इसका नामकरण रघुवीर सिंह राजा के शासनकाल में हुआ। झैटाल माताजी का मंदिर 1632 संवत् में बना। मूर्ति स्थापना के समय मलसिंह व मल्लोप सिंह दोनों का शासन था। यहां के प्रथम पुजारी धुधा लाल थे। जिनकी माता का नाम सुरजा बाई था। जिनके वंशज (भोपा) आज भी झैटाल माताजी की पूजा अर्चना करते हैं।