बूंदीPublished: Jun 23, 2021 09:06:59 pm
पंकज जोशी
जीवनदायिनी चम्बल नदी का पानी न सिर्फ हाड़ौती बल्कि अब प्रदेश के कई जिलों के लोगों को पीने के लिए पहुंच रहा है। चम्बल की पवित्रता और शुद्धता के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन गत कई वर्षों से इसका पानी दूषित होता जा रहा है। जन-जन की आस्था से जुड़ी यह नदी अपना स्वरूप खो रही है।
एक दर्जन नालों से मैली हो रही चम्बल, अवैध खनन से जलीय जीवों पर भी संकट
एक दर्जन नालों से मैली हो रही चम्बल, अवैध खनन से जलीय जीवों पर भी संकट
सत्यनारायण पोकरा
patrika.com
केशवरायपाटन. जीवनदायिनी चम्बल नदी का पानी न सिर्फ हाड़ौती बल्कि अब प्रदेश के कई जिलों के लोगों को पीने के लिए पहुंच रहा है। चम्बल की पवित्रता और शुद्धता के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन गत कई वर्षों से इसका पानी दूषित होता जा रहा है। जन-जन की आस्था से जुड़ी यह नदी अपना स्वरूप खो रही है। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत केन्द्र सरकार ने पहले सभी नदियों को शुद्ध करने का अभियान चलाया है, लेकिन अब तक चम्बल नदी के शुद्धीकरण की शुरुआत नहीं हो सकी है। इधर, लोगों ने इसे दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहीं प्रशासन भी इस ओर उदासीन नजर आ रहा है।
जलीय जीवों ने भी छोड़ा ठिकाना
चंबल नदी में कभी जलीय जीव जंतुओं की भरमार हुआ करती थी। वहीं यह क्षेत्र राष्ट्रीय चम्बल घडिय़ाल अभयारण्य में आता है। पहले यहां मगरमच्छों के साथ ही घडिय़ाल भी काफी मिलते थे। विभिन्न प्रजातियों के जल जीवों की वजह से चंबल की शुद्धता बनी रहती थी। यहां पर बड़ी संख्या में मछलियां, कछुए, चातक अठखेलियां करते रहते थे, लेकिन जब से चंबल का पानी दूषित हुआ एवं चंबल में मत्स्य आखेट शुरू हुआ। तब से जलीय जीवों पर संकट आ गया है। धमाकों से मछली मारने का सिलसिला शुरू हुआ तो सभी जलीय जीव लुप्त हो गए। यहां प्रतिदिन धमाके कर मछुआरे मछलियां मारते हैं। इसी का कारण है कि यहां अब घडिय़ाल नहीं रहे हैं। वहीं मगरमच्छों की संख्या भी निरंतर घटती जा रही है। वर्ष2018-19 में मगरमच्छ 125 थे जो वर्ष 2019-20 में 100 रह गए। वहीं घडिय़ालों की संख्या तो लम्बे समय से शून्य पर ही टिकी हुई है।
खोखले होते किनारे
चंबल नदी के किनारे खोखले होते जा रहे हैं। खननकर्ताओं ने मिट्टी खनन कर सरकारी भूमि को समतल करने में लगे हुए हैं। चंबल नदी के किनारे हजारों बीघा वन भूमि है। जिसमें से लोग लकडिय़ां काटते हैं। चंबल नदी के किनारे अवैध बजरी खनन कर दोहन किया जा रहा है।
एक दर्जन नालों का पानी जा रहा
कोटा से केशवरायपाटन तक चंबल नदी में एक दर्जन छोटे-बड़े नाले मिलते हैं। इन नालों का पानी दूषित एवं अनुपयोगी होता है। चंबल नदी के किनारों पर गंदगी का अंबार रहता है। केशव घाट से राजराजेश्वर महादेव मंदिर तक सभी घाटों में गंदगी का अंबार रहता है। इस गंदगी को रोकथाम के लिए स्थानीय प्रशासन भी विफल हो रहा है। चंबल नदी अब 12 महीने में 8 महीने दूषित रहती है। कई स्थानों पर तो गर्मी के समय पर चंबल नाला बन जाती हैं।
नालों के पानी पर लगे रोक
चंबल नदी को शुद्ध रखने के लिए कोटा से केशवरायपाटन के बीच मिलने वाले गंदे नालों के पानी पर रोक लगाना जरूरी है। इन नालों के पानी का बहाव चंबल नदी की ओर होने से सारा गंदा पानी चंबल में मिलता है जिससे वह दूषित हो चुकी है। इन नालों के लिए पानी को शुद्ध करने के लिए शुद्धिकरण की योजना बनाई जाए। पानी को शुद्ध कर चंबल में डालने की योजना बने तब ही चंबल का पानी सुधर सकता है। अपस्ट्रीम में तो चंबल शुद्ध है लेकिन डाउनस्ट्रीम में यह गंदे नाले का रूप ले चुकी है। कस्बा का संपूर्ण गंदा पानी भी नालियों व नालों से होता हुआ चंबल में मिलता है। यह गंदा पानी केशव घाट पर आकर इक्कठा हो जाता है।
योजना बनना जरूरी
जिस पानी को पीने से आमजन डरता है उसी पानी से भगवान केशव के स्नान होकर उनके लिए प्रसादी तैयार की जाती है। मंदिर के पुजारी शेष नारायण शर्मा ने बताया कि चंबल नदी के दूषित पानी के लिए योजना बनना जरूरी है। चंबल नदी यहां पर धार्मिक आस्था का केंद्र है। पहले तो इसी के पानी को पीने के काम में भी लिया जाता था, लेकिन दो दशक पहले दूषित पानी की वजह से हुई बीमारियों के चलते प्रशासन ने पानी पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
जामुनिया द्वीप में विदेशी पक्षियों की भरमार है। नमामि गंगे की योजना अभी जिले में शुरू नहीं हुई है। इसके लिए 70 कार्यों के लिए प्रस्ताव भेज रखे हैं। इसमेें गंदे नालों के पानी को शुद्ध करके चम्बल में डालना, एनिकट आदि बनाने के प्रस्ताव भी भिजवा रखे हैं।
सुमित कनौजिया, फोरेस्टर
चम्बल नदी शुद्धीकरण की योजना को लेकर प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भिजवाया जाएगा। चम्बल नदी लोगों की आस्था से जुड़ी है। इसको शुद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।
कन्हैयालाल कराड़, अध्यक्ष नगरपालिका, केशवरायपाटन