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गरड़दा बांध : बूंदी एसीबी ने माना घटिया निर्माण था टूटने का कारण

locationबूंदीPublished: Sep 26, 2021 09:49:14 pm

वर्ष 2010 में टूटे गरड़दा बांध मामले में बूंदी एसीबी टीम ने चालानी निर्णय के लिए फाइल मुख्यालय भेज दी है। बूंदी एसीबी ने अपनी जांच में सभी जिम्मेदारों को दोषी माना है।

गरड़दा बांध : बूंदी एसीबी ने माना घटिया निर्माण था टूटने का कारण

गरड़दा बांध : बूंदी एसीबी ने माना घटिया निर्माण था टूटने का कारण

गरड़दा बांध : बूंदी एसीबी ने माना घटिया निर्माण था टूटने का कारण
27 कर्मचारी और अभियंताओं पर आरोप, चालानी निर्णय के लिए फाइल मुख्यालय भेजी
वर्ष 2010 में टूटा था बूंदी का गरड़दा बांध, एसीबी सहित कई एजेंसी ने की जांच
बूंदी. वर्ष 2010 में टूटे गरड़दा बांध मामले में बूंदी एसीबी टीम ने चालानी निर्णय के लिए फाइल मुख्यालय भेज दी है। बूंदी एसीबी ने अपनी जांच में सभी जिम्मेदारों को दोषी माना है। प्रकरण में जल संसाधन विभाग के 27 कर्मचारी और अभियंताओं पर आरोप है। इनमें से कुछ सेवानिवृत्त भी हो गए। प्रकरण 2010 को बांध टूटने के बाद दर्ज हुआ था। इसकी जांच तीन उपअधीक्षक एवं एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने की है।
बूंदी तहसील के होलासपुरा गांव में मेज नदी की सहायक नदी मांगली, डूंगरी व गणेशीनाला पर बना यह बांध 15 अगस्त 2010 को कच्ची मिट्टी की तरह ढह गया था। बांध तब आधे से अधिक भरा हुआ था। तब परियोजना पर सरकार डेढ़ अरब से अधिक खर्च कर चुकी थी। बांध टूटने के बाद खूब हो-हल्ला हुआ। सरकारी स्तर पर जांचें हुई। कुछ अभियंताओं को निलम्बित भी किया गया। मामले में अधिशासी अभियंता सी.एस. बाफना, वीरेन्द्र सिंह मीणा सहित 27 जिम्मेदारों की लापरवाही और निर्माण में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखने के मामले में एसीबी ने प्रकरण दर्ज किया। तभी से मामले की जांच चल रही थी। 11 साल बाद में प्रकरण की जांच पूरी हुई और एसीबी ने चालानी निर्णय के लिए फाइल हेडक्वार्टर को भेज दी। एसीबी ने माना है कि इसके निर्माण में लापरवाही बरती गई, जिससे बांध भरने के पहले वर्ष में ही टूट गया। बांध किसानों की जमीनों को सिंचित करने के लिए बना था। बूंदी एसीबी के उपअधीक्षक ज्ञानचंद मीणा ने बताया कि गरड़दा मामले की जांच पूरी करके फाइल चालानी निर्णय के लिए एसीबी मुख्यालय को भेज दी। अब आगे का निर्णय मुख्यालय से होगा। इन गांवों को आज भी ‘आस’
गरड़दा बांध की 38.72 किमी लंबी बायीं मुख्य नहर से गोपालपुरा, उलेड़ा, खूनेटिया, सीन्ती, रामनगर, खेरुणा, कांटी, उमरथूना, भवानीपुरा उर्फ बांगामाता, मंगाल, तीखाबरड़ा, श्रीनगर, रूपनगर, गरनारा, भीम का खेड़ा, हजारी भैरू की झोपडिय़ां, लाखा की झोपडिय़ां, सिलोर कलां, हट्टीपुरा, कांजरी सिलोर, बलस्वा, रघुवीरपुरा, अस्तोली, रायता, उमरच, दौलतपुरा, रामगंज बालाजी, छत्रपुरा व देवपुरा तथा 14.79 किमी लंबी दायीं मुख्य नहर से लोईचा, सुंदरपुरा, श्यामू, हरिपुरा, श्रवण की झोपडिय़ां, मालीपुरा, भैरूपुरा, मण्डावरा, होलासपुरा, बांकी, अनूपपुरा, मण्डावरी, पाकलपुरिया व प्रेमपुरा गांव को सिंचाई के लिए बांध के पानी की आस है।
मुख्यमंत्री ने रखी थी नींव
परियोजना की नींव मुख्यमंत्री ने 21 सितम्बर 2003 को रखी थी। बांध की 4200 मीटर लंबी दीवार के साथ-साथ यहां कार्यालय और कर्मचारियों के भवनों का निर्माण कराया गया। वर्ष 2003 में बांध की प्रस्तावित लागत 81 करोड़ थी, जो वर्ष 2009 में बढकऱ 147 करोड़ रुपए हुई। 2019 में यह लागत बढकऱ ढाई अरब से अधिक हो गई। अब इसकी लागत 400 करोड़ से अधिक मानी जा रही है। बांध का पुनर्निर्माण अब केंद्रीय जल आयोग की ड्राइग के आधार पर हो रहा है।

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