गोठड़ा. कहार समाज को इन दिनों आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। साल में एक बार तरबूज की खेती करके जीवन यापन करने वाले समाज को तरबूज की खेती से मुनाफा नहीं मिलने से परेशानी उठानी पड़ रही है।
जानकारी के अनुसार इस बार बांधों एवं तालाबों की पेटाकाश्त भूमि पर सैकड़ों बीघा पर तरबूज खरबूज, तरककड़ी आदि की बुवाई की थी, लेकिन कोरोना के चलते इनके भाव में भारी गिरावट के कारण कहार समाज को इस वर्ष भी निराशा ही हाथ लगी है। भाव में गिरावट के कारण तरबूज खरबूज आदि कम दामों में बेचने को यह किसान मजबूर हो रहे हैं। जिसके चलते इन्हें दूसरे साल भी मेहनत की कमाई नहीं मिल पाई है। जिससे यह लोग आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे है।
20 हजार का खर्चा, आधी कीमत मिल रही
किसानों ने बताया कि एक बीघा तरबूज की खेती में करीब 20000 का खर्च आता है। एक बीघा से निकलने वाली तरबूज की उपज का औने पौने दाम में बेचने पर आधी कीमत ही मिल पा रही है। किसान शिवराज कहार, रमेश चंद कहार, देवीलाल कहार ने बताया कि गोठड़ा, रोनिजा सहित उपखंड के कई बांधों एवं तालाबों में तरबूज की बुवाई की थी। जिस की उपज भी बंपर हो रही है, लेकिन खरीदार नहीं मिलने से तरबूज के भाव गिरने से परेशानी हो रही है।
दिल्ली तक जाते है तरबूज
उपखंड क्षेत्र में पैदा हो रहे तरबूज राजस्थान ही नहीं बल्कि राज्य के बाहर दिल्ली, अहमदाबाद, गुजरात, पंजाब आदि जगहों के साथ-साथ बूंदी कोटा जयपुर, उदयपुर, जोधपुर आदि स्थानों में बिकने के लिए भेजे जाते हैं, लेकिन राज्यों में लॉकडाउन व कफ्र्यू के कारण मंडियां समय पर नहीं खुल पाने से खरीदार नहीं मिल रहे है।
कहार समाज का पैतृक व्यवसाय
कहार समाज पानी से उपज वाली उपज को ही बाजार में बेच कर अपना जीवन यापन करता है। इसमें सिंघाड़ा एवं तरबूज सहित अन्य फसलें शामिल है। सरकार की ओर से इन्हें कोई आर्थिक अनुदान नहीं मिलने से किसान बेरोजगारी का दंश भी झेल रहे है।
अगेती को फायदा, पचेती को नुकसान
जिन किसानों ने 1 माह पूर्व ही तरबूज, खरबूज, तरककड़ी की बुवाई कर ली थी। उन्हें भाव अच्छे मिले, लेकिन जिन किसानों ने इनकी खेती 1 माह बाद शुरू की। लॉकडाउन एवं कफ्र्यू के कारण तरबूजों को औने पौने दाम पर बेचना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि अभी 4 से 5 किलो तरबूज बिक रहा है। जिससे उन्हें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। करीब 60 से 70 प्रतिशत किसानों की पैदावार अभी खेतों में ही है। ऐसे में भाव नहीं रहे तो उन्हें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
दूसरे साल भी रही भारी गिरावट
गत वर्ष मार्च से ही पूरे देश में लॉकडाउन रहने के कारण तरबूज की खेती प्रभावित हुई थी। लंबे चले लॉकडाउन के कारण खरीदार नहीं मिलने से तरबूज की खेती को कई किसानों ने खेतों में नष्ट कर दिया था। इस बार भी तरबूज, खरबूज, तर ककड़ी की खेती जैसे ही उत्पादन शुरू हुआ। उसी समय कोरोना संक्रमण के मामले बढऩे के कारण वीकेंड कफ्र्यू एवं लॉकडाउन लगने से पैदावार को भेजने में काफी परेशानी हो रही है। किसान खेतों से फसल को निकालकर गाडिय़ों में तो भर रहे हैं, लेकिन जब वह बिकती है, तो गाड़ी का किराया ही उनके हाथ में आता है।
उत्पादन बंपर, भाव नहीं मिल रहे
2 सालों से तरबूज के भाव में कमी आने के कारण प्रति बीघा खर्च अधिक होने एवं भाव नहीं मिलने से आर्थिक समस्या बनी हुई है। यदि आगे भी ऐसा ही रहा तो कई किसान इस फसल से भी मुंह मोड़ सकते हैं।