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वाहन से घर भेजा तो नहीं रहा खुशी का ठिकाना

locationबूंदीPublished: Jun 01, 2020 07:00:53 pm

बूंदी. अपनी दो नन्हीं बेटियों के साथ गरीबी की मजबूरी में ढाई सौ किलोमीटर दूर घर के लिए घिसटते हुए जयपुर जा रही विधवा दिव्यांग रेखा का उस समय खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब रविवार शाम बूंदी से कांग्रेस प्रवासी सहायता टीम व प्रशासन के सहयोग से पूरे परिवार को नए कपड़े भेंट किए और वाहन से जयपुर स्थित घर के लिए रवाना किया।

वाहन से घर भेजा तो नहीं रहा खुशी का ठिकाना

वाहन से घर भेजा तो नहीं रहा खुशी का ठिकाना

वाहन से घर भेजा तो नहीं रहा खुशी का ठिकाना
बूंदी. अपनी दो नन्हीं बेटियों के साथ गरीबी की मजबूरी में ढाई सौ किलोमीटर दूर घर के लिए घिसटते हुए जयपुर जा रही विधवा दिव्यांग रेखा का उस समय खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब रविवार शाम बूंदी से कांग्रेस प्रवासी सहायता टीम व प्रशासन के सहयोग से पूरे परिवार को नए कपड़े भेंट किए और वाहन से जयपुर स्थित घर के लिए रवाना किया। खुशी से दिव्यांग रेखा व दोनों बेटियों की आंखों में आंसू छलक आए। मौजूद लोगों की पलकें नम हो गई। बूंदी के देवपुरा रैन बसेरे से उपखंड अधिकारी कमल कुमार मीणा, कांग्रेस प्रवासी सहायता कंट्रोल रूम के प्रभारी चर्मेश शर्मा ने पीडि़त परिवार को जयपुर घर के लिए रवाना किया। इस अवसर पर प्रवासी सहायता टीम के सदस्य अंकित बुलीवाल व केशवपुरी भी मौजूद थे। दिव्यांग रेखा राष्ट्रीय राजमार्ग पर अपनी 8 वर्षीय बेटी मोनिका और 14 वर्षीय चीतू के साथ पैदल घसीटते हुए ही जयपुर के लिए जा रही थी। तालेड़ा से एक समाजसेवी की सूचना पर कांग्रेस के प्रवासी सहायता के सदस्य पहुंचे और उसे बूंदी रैन बसेरे में ठहराया।
मदद को उठे हाथ
स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत अक्षय बुलीवाल ने छोटे भाई प्रवासी सहायता टीम के सदस्य अंकित के आग्रह पर वाहन की व्यवस्था कराई। शिक्षक जगदीश मीणा व टीम सदस्य केशव पुरी ने दिव्यांग की दोनों बेटियों को दो जोड़ी कपड़े दिलवाए। दिव्यांग रेखा को दो साडिय़ां, जयपुर में 5 वर्ष से छोटी बेटी के लिए भी 2 जोड़ी कपड़े भेजे। स्वयं बूंदी एसडीएम मीणा ने सभी को नए चप्पल भेंट किए। चाइल्ड हेल्पलाइन एनजीओ के सदस्य भी पहुंचे और मदद का भरोसा दिया।
मजबूरी में करती हूं मजदूरी
14 वर्षीय बेटी चीतू को जब मजदूरी छोडकऱ पढऩे की सलाह दी तो वह भावुक हो गई। रोने लगी। चीतू ने कहा कि 4 वर्ष पहले पिता नहीं रहे, मां दोनों पैरों से दिव्यांग हो गई। दो छोटी बहनें हैं ऐसे में परिवार का खर्चा चलाने के लिए मजबूरी में मजदूरी कर रही है।

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