बूंदीPublished: Aug 12, 2019 09:56:39 pm
पंकज जोशी
साढ़े सात सौ रूपए की मिल रही सामाजिक सहायता पेंशन राशि के सहारे जीवन काट रहे 70 वर्षीय नेत्रहीन बजरंगलाल नामा का पक्का आशियाना ढह जाने से बेघर होने से दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा।
बचपन में नेत्र ज्योति छीन गई तो वृद्धावस्था में रहने का ठिकाना
नैनवां. साढ़े सात सौ रूपए की मिल रही सामाजिक सहायता पेंशन राशि के सहारे जीवन काट रहे 70 वर्षीय नेत्रहीन बजरंगलाल नामा का पक्का आशियाना ढह जाने से बेघर होने से दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। बचपन में आंखों की रोशनी चली गई तो अब वृद्धावस्था में आशियाना भी छीन गया। बजरंगलाल ढोलक मास्टर है। जो भजन-कीर्तनों में ढोलक बजाकर अपना गुजारा करता है। आय का और कोई जरिया नही होने से सरकार की ओर से मिलने वाली समाजिक सहायता की पेंशन राशि से ही गुजारा करता है। कभी ढोलक बजाने का मेहनताना मिल जाता है तो वह भी उसके लिए बड़ा सहारा होता है। ऐसी स्थिति में उसके लिए अब अपना आशियाना खड़ा करना दुविधा बन गया। यह तो गनीमत है कि जिस समय आशियाना ढहा उस समय वह कीर्तन में ढोलक बजाने गया हुआ था जिससे जान बच गई। बजरंगलाल अकेला ही वार्ड पांच में अपने पुश्तैनी मकान के एक कमरे में रहता है। मकान का बाकी का हिस्सा तो पहले ही ढह चुका था। एक पक्का कमरा सुरक्षित था वह ही कई वर्षो से उसका आशियाना बना हुआ था। रविवार को दिन में अचानक कमरे की पट्टियां टूटने के साथ पूरा कमरा ही मलबे में तब्दील हो गया। पडोसियों ने मन्दिर में चल रहे कीर्तन में जाकर कमरा ढहने की सूचना दी तो नेत्रहीन के चेहरे पर निराशा छा गई।