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उमर के रणबांकुरों की कहानी है निराली, अब तक 500 से अधिक सैनिक दे चुका गांव

locationबूंदीPublished: Jan 26, 2020 02:05:30 pm

Submitted by:

Narendra Agarwal

हाइवे 52 से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित उमर गांव, जिसकी फौजियों का गांव के नाम से पहचान कायम हो गई। चाहे प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध हो या फिर करगिल की लड़ाई… बूंदी जिले के इस गांव के जांबाज पीछे नहीं हटे। कुछ तो मातृभूमि की रक्षा करते शहीद भी हुए।

उमर के रणबांकुरों की कहानी है निराली, अब तक 500 से अधिक सैनिक दे चुका गांव

उमर के रणबांकुरों की कहानी है निराली, अब तक 500 से अधिक सैनिक दे चुका गांव

नागेश शर्मा/चंद्रप्रकाश योगी
बूंदी. पेच की बावड़ी. हाइवे 52 से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित उमर गांव, जिसकी फौजियों का गांव के नाम से पहचान कायम हो गई। चाहे प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध हो या फिर करगिल की लड़ाई… बूंदी जिले के इस गांव के जांबाज पीछे नहीं हटे। कुछ तो मातृभूमि की रक्षा करते शहीद भी हुए। जिले में उमर एक ऐसा गांव होगा, जिसकी चौथी पीढ़ी फौज में पहुंच गई।
जानकारों की मानें तो उमर गांव से अब तक करीब 500 से अधिक सैनिक सेना में रहकर दुश्मनों को जंग में हरा चुके। गांव के दो सैनिक वर्ष 1965 के युद्ध में रघुनाथ मीणा जम्मू क्षेत्र और वर्ष 2000 में वीर बहादुर जगदेवराज सिंह बिहार में शहीद हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव के करीब 25 सैनिकों ने अलग-अलग जगहों पर दुश्मनों से लोहा मनवाया। उमर से भारतीय सेना में 12 कैप्टन, 15 सूबेदार, 8 नायब सूबेदार सहित हवलदार और दर्जनों सिपाही देश की सीमा के प्रहरी रह चुके। उमर गांव में प्रत्येक घर से तीन से चार जने सेना में बताए। फौज से रिटायर्ड होकर आए लोगों के सुनाए किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं। इनकी सुनाई सच्चाई लोगों को सिर्फ फिल्मों में दिखती है।


फौजियों की जुबानी : हम आज भी तैयार
सेना से रिटायर्ड कैप्टन देवीसिंह मीणा, कैप्टन पांचूलाल मीणा, सूबेदार कजोड़लाल धोबी, नायक शिवजीलाल मीणा, हवलदार हरचंद मीणा, प्रभुलाल मीणा आज भी जरूरत पडऩे पर तैयार दिखेंगे। इन फौजियों ने उम्र भले पा ली हो, लेकिन इनका जज्बा आज भी कम नहीं हुआ। वे बोले दुश्मन के दांत खट्टे करने में उनके हौसले कम नहीं हुए। आवाज पड़ी तो सीमा पर जा पहुंचेंगे टैंकर की भांति।

पीड़ा भी : रोडवेज बस भी नहीं चलती
सैनिक गांव से हिण्डोली, बूंदी, देवली आने-जाने व बच्चों को शिक्षा के उद्देश्य से बाहर जाने के लिए करीब 15 वर्ष पहले रोडवेज बस आती-जाती थी, लेकिन वह भी बंद कर दी गई। इससे ग्रामीणों, सैनिकों के परिवारजनों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। यहां आवागमन का कोई साधन नहीं मिलता।


गोद लेकर भूल गई कोटा आर्मी हैड क्वार्टर
वर्ष 1996 में उमर गांव को कोटा आर्मी हैड क्वार्टर ने गोद लिया, लेकिन फिर भी गांव को कोई सुविधा नहीं मिली। यहां आने वाली कैंटीन गाड़ी भी पिछले कई वर्षों से बंद हो गई। ऐसे में जरूरत के सामानों की खरीद करने के लिए कोटा जाना पड़ता है। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। चिकित्सा के नाम पर गांव में एक यूनानी हॉस्पिटल व उपस्वास्थ्य केंद्र है। एक पोस्ट ऑफिस। 12वीं तक का स्कूल है। 

शहीद स्मारक बने प्रेरणादायक
बिहार में शहीद हुए सैनिक जगदेवराज सिंह के नाम से गांव में अब शहीद स्मारक बना गया। इसमें शहीद जगदेव की मूर्ति स्थापित कर दी गई। हर वर्ष यहां श्रद्धांजलि अर्पित करने का कार्यक्रम आयोजित सिर्फ इस लिए होता है कि आने वाली पीढ़ी को पुराने संस्मरण ध्यान रहें। वीरांगना व परिजनों का सम्मान किया जाता है। जगदेवराज का बड़ा बेटा देवराज मीणा वर्तमान में सेना में है।

चार पीढिय़ां देश सेवा में
1. उमर के रूगा हवालदार ने प्रथम विश्वयुद्ध में जंग लड़ी। बाद में रूगा का बेटा श्रीलाल मीणा आजाद हिंद फौज में गार्ड कमांडर रहा। उसने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा। तीसरी पीढ़ी में कैप्टन देवीसिंह मीणा जिन्होंने 1971 के युद्ध में भाग लिया। चौथी पीढ़ी में देवीसिंह मीणा का पुत्र अर्जुन मीणा जो 14 साल से पाक बोर्डर पर हवलदार बनकर तैनात है।
2. उमर के छोगा सिंह ने प्रथम विश्वयुद्ध लड़ा। वे सिपाही थे। इसके बाद बेटा हरनाथ मीणा फौज में भर्ती हुआ। इसके बाद हरनाथ का बेटा जगदेव सिंह सैनिक बना, जो वर्ष 2000 में बिहार में शहीद हो गए। इसके बाद जगदेव का बेटा देवराज मीणा सीआरपीएफ में भर्ती हो गया। वह सात साल से फौज में है। जगदेव का एक बेटा आईआईटी कर रहा है। तीन बेटियां पढ़ाई कर रही हंै। उनकी मां कमला देवी आज भी गांव के युवाओं को फौज में जाने के लिए प्रेरित करने से पीछे नहीं हटती।
3. उमर के गणेशराम मीणा ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा। फिर बेटा कानाराम मीणा फौज में हवलदार रहे। तीसरी पीढ़ी में जगदीश मीणा, हरचंद मीणा एवं प्रभुलाल मीणा फौज में भर्ती हुए। अब चौथी पीढ़ी में शिवप्रकाश मीणा और प्रवीण कुमार फौज में भर्ती हो गए। 

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