देखे कई उतार चढ़ाव
स्टेट के समय में कलाकार रामलीला में पूरे चौपाई, दोहे व संवाद के साथ अभिनय करते थे। स्थानीय कलाकारों के अलावा अन्य जिलों कलाकारों ने भी रामलीला का मंचन कर लोगों का दिल जीता। एक समय बूंदी की राजकुमारी महेन्द्रा कुमारी भगवान राम के राज्य अभिषेक की साक्षी बनी। उस दौर की खास बात यह थी कि भगवान राम हाथी पर सवार होकर रावण का वध करने जाते थे। जबकि अन्य कलाकार घोड़े की बग्घियों में आते थे। शोभायात्रा व रामलीला में एक उत्साह लोगों का देखने को मिलता था। तब लंकागेट के यहां रावण दहन हुआ करता था। वहीं पात्र बने कलाकार राजा-महाराजाओं की ड्रेस पहना करते थे। उस दौर से लेकर अब तक में एक खास बात यह रही की रामलीला का मंचन व भगवान राम का राज्य अभिषेक एक मंच पर होता था, जबकि भरत-मिलाप बुलबुल के चबूतरे पर। इस तरह यह ‘रामलीला’ पूरे शहर में आस्था उल्लास आकर्षण का केंद्र रही।्र
जमना लाल थे राम, रामलक्ष्मण बनते थे सीता
पहली रामलीला का मंचन 1964-64 में दशहरे के आयोजन के साथ ही शुरू हुआ। इस रामलीला में राम सीता का अभिनय जमनालाल धाभाई व रामलक्ष्मण ने किया। जबकि रावण की भूमिका जंगम की बगीची के महंत बाबा चमन गिरी महाराज ने निभाई। राजा दशरथ भी बाबा ही बना करते थे। राम बने पात्र अब तक 18 बार रावण का वध कर चुके हैं। वहीं बूंदी मंडली को स्थानीय स्तर पर व अन्य जिलों में भी कई मेंडल व प्रमाण पत्र मिले।
50 साल से पुरुष कर रहे महिला का अभिनय
बूंदी वीर भद्र रामलीला मंडली व अन्य बाहर से आई मंडली की खासियत यह रही कि इसमें महिला पात्र का शामिल नहीं होना भी है। करीब 50 साल के इतिहास में पुरुष ही महिला पात्र की भूमिका निभा रहे हैं। बताया जा रहा है कि हालांकि कई बार महिला पात्र के लिए महिला कलाकारों के सहयोग के लिए सुझाव भी आए, लेकिन मंडली ने कभी उसको स्वीकार नहीं किया। हालांकि बाहरी महिला कलाकारों को मंच पर प्रस्तुति की छूट जरूर है।
तब 20 फीट का बनता था रावण
बूंदी वीर भद्र मंडली से जुड़े लोग बताते हैं कि बूंदी में सबसे पहले रावण कागज की गत्तों का हुआ करता था जो करीब 15-20 फीट का बनाया गया था। वहीं रावण का वध करने के लिए भगवान श्रीराम ने हाथी पर बैठकर प्रस्थान किया था। इसी के साथ अन्य कलाकार घोड़ों की बग्घी में सवार होकर निकलते थे। मंडली में 25-30 कलाकार अभिनय करते थे।
इतिहास बना बुलबुल का चबूतरा
बूंदी के सत्यनारायण शेरगढिय़ा ने बताया कि रामलीला मंचन की शुरुआत जिस मंच से हुई वो आज भरत-राम मिलाप का साक्षी बना हुआ है। बूंदी के आजाद पार्क में रामलीला का मंचन होने के बाद नाहर का चौहट्टा स्थित बुलबुल का चबूतरा ‘छोटीकाशी’ बूंदी के लिए भरत-राम मिलाप का साक्षी बना हुआ है। शेरगढिय़ा ने बताया कि बूंदी का बुलबुल का चबूतरा परकोटे के भीतरी शहर में है।
…तो टोंक में मिला पहले रावण दहन का मौका
बूंदी मंडली के डायरेक्टर जमनालाल (राम का अभिनय करने वाले) बताते हैं कि टोंक में पहली बार बूंदी की मंडली ने वर्ष 1972 में रावण दहन किया। इससे पूर्व यहां रामलीला का मंचन कलाकार करते थे, जबकि रावण का दहन मंदिर के महंत के राम-लक्ष्मण बने लडक़ों द्वारा किया जाता था। जिस परम्परा को बूंदी के कलाकारों ने बदला।
राजमाता रावले से राललीला देखा करती थी
धार्मिक नगरी बूंदी में रामलीला हो इसके लिए राजमाता श्यामराज कंवर ने कलाकारों को प्रेरित किया। उन्होंने इसके खर्चे के लिए कलाकारों को 25 रुपए दिए।जब मंचन शुरू हुआ तो राजमाता रावले से राललीला देखा करती थी। तब वीर भद्र रामलीला मंडली के संस्थापक नंदकिशोर सिंह धोला ‘नंदा धोळा’ और निदेशक सीताराम शर्मा थे। नंदकिशोर सिंह को स्टेट के समय गायिकी पसंद थीं।
बूंदी के आजाद पार्क में शुरू हुई ‘रामलीला’ को पूर्व मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता पंडित बृजसुंदर शर्मा ने खूब प्रोत्साहित किया। उन्होंने इसके आयोजन का जिम्मा तत्कालीन बूंदी नगर पालिका को सौंपा था।