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दुगारी के कनकसागर में परिंदों ने बसाया सुनहरा संसार

locationबूंदीPublished: Jan 12, 2018 09:18:36 pm

नैनवां. उपखंड के दुगारी के कनकसागर में दुर्लभ परिंदों का सुनहरा संसार देख पक्षी प्रेमियों के चेहरे खिल उठे। स्थानीय पक्षियों के बीच सर्दी का मौसम बिता

dugaaree ke kanakasaagar mein parindon ne basaaya sunahara sansaar

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नैनवां. उपखंड के दुगारी के कनकसागर में दुर्लभ परिंदों का सुनहरा संसार देख पक्षी प्रेमियों के चेहरे खिल उठे। स्थानीय पक्षियों के बीच सर्दी का मौसम बिताने आए एक दर्जन दुर्लभ प्रजातियों के परिदों की उपस्थिति से कनकसागर में पक्षियों की बहार लौट आई। बुधवार से वन विभाग ने उपखंड के जलाशयों में पक्षियों की पहचान व गणना का कार्य शुरू करा दिया।
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पक्षी प्रेमी दुष्यंतसिंह टीटू व नैनवां के रेंजर संजीव गौतम पक्षियों की पहचान के लिए कनकसागर पहुंचे। पहले ही दिन स्थानीय पक्षियों के अलावा एक दर्जन दुर्लभ पक्षी देखने को मिले। जो कनकसागर से कई वर्षों से लुप्त थे। पक्षियों में पचास से अधिक इंडियन स्कीमर भी देखने को मिले। वन विभाग के सूत्रों की माने तो देश में इंडियन स्कीमर 6 से दस हजार की संख्या में ही रह गया। धौलपुर से आगरा के बीच चम्बल नदी में ही स्कीमर देखने को मिलते हैं। कनकसागर में ग्रे हीरोन व हीरोन पक्षी भी देखने को मिले। ग्रे हीरोन भी दुर्लभ पक्षियों की श्रेणी में आते हंै जो अपनी लम्बी चौंच से दूर से ही पहचान में आ जाते हैं।इनके अलावा ब्लेक टेल गोड पिट, लिटिल रिंगड फ्लोवर, स्नेड सेक, ई-ग्रेट्स, ज्यूरेशियन करलीव, थिकनी, कॉमन स्वाइप, कॉमनगल, जांघिल, कोरबोटेंट प्रजाति पक्षी भी देखने को मिले हैं।
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पक्षी शिकार निषिद्ध क्षेत्र घोषित हो
72 वर्ग किमी भराव वाले क्षेत्र वाली झील की भौगोलिक स्थिति परिंदों के संरक्षण के अनुकूल होने व पक्षियों की भरमार को देखते हुए वन विभाग ने 19 फरवरी 198 5 में तालाब को पक्षी शिकार निषिद्ध क्षेत्र घोषित किया था। हाड़ौती में रंग-बिरंगे प्रवासी व अप्रवासी पक्षियों का सबसे बड़ा आश्रय स्थल माना जाता था। डेढ़ दशक पूर्व तक जब तालाब शिकार निषिद्ध क्षेत्र घोषित था। तब तक तो प्रवासी व अप्रवासी पक्षियों की भरमार हुआ करती थी। सर्दी की दस्तक के साथ ही प्रवासी के साथ-साथ अप्रवासी पक्षियों की कलरव चहकने लग जाती थी। वर्ष 2003 में कानून में संशोधन कर तालाब से शिकार निषिद्ध प्रयोजन खत्म कर दिया। उसके बाद से ही मत्स्य आखेट का ठेका होने से दिनभर तालाब में दौड़ती नावों व पटाखों की गूंज की खलल ने पक्षियों को तालाब से दूर से कर दिया।

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