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हो-हल्ले के बीच गुजरा वक्त, बाट जोहते रह गए किसान

locationबूंदीPublished: Sep 08, 2018 11:40:10 am

Submitted by:

Nagesh Sharma

जिले की बहुप्रतीक्षित गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना आठ वर्ष बाद भी किसानों की प्यास नहीं बुझा पाई है।

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हो-हल्ले के बीच गुजरा वक्त, बाट जोहते रह गए किसान

15 अगस्त 2010 को टूटा था गरड़दा बांध, डेढ़ अरब से अधिक खर्च कर चुकी सरकार, परिणाम शून्य
बूंदी. नमाना. जिले की बहुप्रतीक्षित गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना आठ वर्ष बाद भी किसानों की प्यास नहीं बुझा पाई है। दोनों ही राजनीतिक दलों ने इस परियोजना को लेकर मंचों से खूब वाह-वाही लूटी, लेकिन किसान आज भी इस परियोजना को पूरा होने की बाट जोह रहे हैं। बूंदी तहसील के होलासपुरा गांव में मेज नदी की सहायक नदी मांगली, डूंगरी व गणेशीनाला पर बना यह बांध 15 अगस्त 2010 को कच्ची मिट्टी की तरह ढह गया था। बांध तब आधे से अधिक भरा हुआ था। तब परियोजना पर सरकार डेढ़ अरब से अधिक खर्च कर चुकी थी। बांध टूटने के बाद खूब हो-हल्ला हुआ। सरकारी स्तर पर जांचें हुई। कुछ अभियंताओं को निलम्बित भी किया गया। मामला कई बार विधानसभा में गूंजा। दोनों ही सरकारों ने किसानों से खूब वादे किए, लेकिन इस वादे पर खरी दोनों ही सरकारें नहीं उतरी। पिछली सरकार इस बांध को अपने कार्यकाल में फिर से बनवाने के दावे करती रही। इसके बाद दूसरी सरकार का भी पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने को आया, लेकिन बांध का अभी तक पुनर्निर्माण नहीं हुआ। यहां किसानों की लगातार मांग के बाद वर्तमान राज्य सरकार ने इसके पुनर्निर्माण के लिए ५४.३७ करोड़ रुपए का बजट जारी किया, लेकिन बांध में इस बार मानसून पूर्व तक ड्रेसिंग का कार्य चला। अब काम फिर से बंद हो गया।
यहां काम शुरू हुए एक वर्ष हो गया। अभी तक मात्र बीस फीसदी ही काम पूरा हुआ है। जबकि सरकार ने 22 माह में बांध का निर्माण कार्य पूरा करने का समय निर्धारित किया है। अब दस माह में शेष काम पूरा करने के मामले में फिर से सवाल खड़े होने लगे हैं।
७ साल में हुआ टेंडर
15 अगस्त 2010 को बांध का एक हिस्सा पानी के बहाव के साथ टूटा था जिसे सरकारें 7 वर्षों से जांचों में अटकाए रही। अक्टूबर २०17 को बांध के पुनर्निर्माण कार्य का टेंडर हुआ।
मुख्यमंत्री ने रखी थी नींव
परियोजना की नींव मुख्यमंत्री ने २१ सितम्बर २००३ को रखी थी। बांध की ४२०० मीटर लंबी दीवार के साथ-साथ यहां कार्यालय और कर्मचारियों के भवनों का निर्माण कराया गया। वर्ष २००३ में बांध की प्रस्तावित लागत ८१ करोड़ थी, जो वर्ष २००९ में बढ़कर १४७ करोड़ रुपए तक पहुंच गई।
इन गांवों को ‘आसÓ
गरड़दा बांध की ३८.७२ किमी लंबी बायीं मुख्य नहर से गोपालपुरा, उलेड़ा, खूनेटिया, सीन्ती, रामनगर, खेरुणा, कांटी, उमरथूना, भवानीपुरा उर्फ बांगामाता, मंगाल, तीखाबरड़ा, श्रीनगर, रूपनगर, गरनारा, भीम का खेड़ा, हजारी भैरू की झोपडिय़ां, लाखा की झोपडिय़ां, सिलोर कलां, हट्टीपुरा, कांजरी सिलोर, बलस्वा, रघुवीरपुरा, अस्तोली, रायता, उमरच, दौलतपुरा, रामगंज बालाजी, छत्रपुरा व देवपुरा तथा १४.७९ किमी लंबी दायीं मुख्य नहर से लोईचा, सुंदरपुरा, श्यामू, हरिपुरा, श्रवण की झोपडिय़ां, मालीपुरा, भैरूपुरा, मण्डावरा, होलासपुरा, बांकी, अनूपपुरा, मण्डावरी, पाकलपुरिया व प्रेमपुरा गांव को सिंचाई के लिए बांध के पानी की आस है।
सीडब्ल्यूसी जारी कर चुका अंतिम ड्राइंग
गरड़दा बांध के टूटे हुए हिस्से के निर्माण कार्य की फाइनल ड्राइंग 2 माह पहले जारी हुई। विभागीय सूत्रों के अनुसार केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की टीम ने अप्रेल माह में टूटे हुई हिस्से की अंतिम ड्राइंग जारी की है। जिसमें इसका निर्माण कार्य मिट्ट्ी से होना ही तय किया है। पहले उच्च अधिकारी तय नहीं कर पा रहे थे कि टूटे हिस्से पर पक्का निर्माण कार्य करें या लोहे का गेट लगाया जाए। अब सीडब्ल्यूसी की टीम ने मिट्टी से निर्माण की अनुमति दी है।

बांध के पुनर्निर्माण का कार्य बीस फीसदी पूरा हो गया है। बरसात की वजह से निर्माण कार्य धीमी गति से चल रहा है। 15 सितम्बर के बाद कार्य गति पकड़ेगा। तय समय में निर्माण कार्य को पूरा कराने के पूरे प्रयास करेंगे। 2020 जनवरी में बांध में पानी रोकने का पूरा प्रयास होगा। टूटे हुए हिस्से की ड्राइंग 2 महीने पहले आ चुकी है। उस जगह पर मिट्टी से निर्माण कार्य होगा।
हेमंत शर्मा, अधीक्षण अभियंता, गरड़दा मध्यम सिंचाई परियोजना, बूंदी

वर्तमान राज्य सरकार किसानों के प्रति गंभीर नहीं रही। सरकार ही नहीं चाहती कि बांध का काम पूरा हो। पूरा बांध भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका। इस बांध के पूरा होने की कांग्रेस सरकार में ही उम्मीद रहेगी।
ममता शर्मा, पूर्व विधायक, बूंदी

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