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बूंदी

जीवदया की अनूठी मिसाल- गर्मी के दौर में अब राजस्थान के इस गांव में लोगों को नही करना पड़ता पलायन…

नेकी का इरादा हर किसी में नहीं जाग पाता, बिरले ही होते है जो प्रकृति को पहचान पाता है।

बूंदीJan 30, 2018 / 01:15 pm

Suraksha Rajora

jeevadaya kee anoothee misaal-gaanv mein nahee karana padata palaayan

मेहनत की कमाई से बनवा दिया दो हजार लीटर क्षमता पानी का टेंक बेजुबानों के लिए मसीहा बना यह शख्स…

बूंदी- नेकी का इरादा हर किसी में नहीं जाग पाता, बिरले ही होते है जो प्रकृति को पहचान पाता है। आज भी कुछ जिंदादिल इंसान है जो मनुष्य ही नही बल्कि बेजुबानों के लिए भी हमदर्द बने है जी हां बूंदी से 6 कि.मी दूर तालाब गांव में 55 वर्षीय सद्वीक ऐसे ही शख्स है जो मिसाल बने है। रात दिन एक कर अपनी मेहनत की कमाई से बेजुबानों को पानी की कोई कमी न हो इसके लिए दो हजार लीटर क्षमता पानी की टंकी बनवा दी। आज यह पानी की टंकी दूर दूर तक चर्चा में है। यहां गांव के ही नही बल्कि जंगल के जानवर भी अपनी प्यास बुझाते है। तालाब गांव में पानी की यह खेल पिछले चार सालों से बेजुबानों की प्यास बुझा रही है।
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ऐसे मिली प्रेरणा-


तालाब गांव निवासी सद्वीक कभी ट्रक ड्राइवर का काम करते थे पांच साल पूर्व जब प्यास से गांव के कई जानवर अकाल मौत का शिकार हुए तब उन्होनें ठान लिया कि गांव के जानवरों के लिए पानी की व्यवस्था करेगें। इसके लिए पहले उन्होनें गांव में रास्ता बनवाया, गांव में ही खरीदी जमीन पर दो हजार लीटर क्षमता पानी का टेंक बनवाया और उसे 1500 फीट पाइप लाइन से जोड़ा। 24 घंटे पानी की कमी न हो इसके लिए विधुत विभाग से सिंगल फेस कनेक्शन लिया। अब 12 माह इस टेंक में पानी भरा रहता है साथ ही पानी की खेल लबालब रहती है सुबह दोपहर शाम यहां जानवरों का झुंड लगा रहता है, जो अपनी प्यास बुझाकर अपने गंतव्य पर लौट जाते है।
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सद्वीक के इस कार्य से गांव वाले खुश है। तीन हजार आबादी वाले इस तालाब गांव में हर घर में पशु है, जिन्हें अब आसानी से पानी मुहैया हो जाता है। अब गर्मी के दौर में गांव वालो को कहीं पलायन नही करना पड़ता। पूरे गांव में एकमात्र यही पानी की खेल है जहां गांव के ही नही बल्कि जंगल के जानवर भी अपनी प्यास बुझाते है यही वजह है कि गांव के रास्ते को भी सद्वीक ने जानवरों के लिए सुगम करवा दिया ताकि आसानी से यहां पहुंच सके। प्यास बुझाने के साथ बकरियों व गायों के लिए चारे की भी व्यवस्था की जाती है।
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सरपंच मोहम्मद हनीफ का कहना है कि सद्वीक के इस कार्य से गांव में अब खुशहाली है, जंगल से सटे गांव में बड़ी सख्ंया में पशु पानी पीने आते है यहां अधिकतर लोग पशुपालन व्यवसाय पर ही टिके हुए है।
डेढ़ लाख का खर्च-


आर्थिक रूप से कमजोर सद्वीक को इस कार्य के लिए पहले परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन कहते है इरादे नेक हो तो मुश्किले भी आसान हो जाती है, जानवरों के लिए बनी पानी की टंकी की लागत करीब डेढ़ लाख रूपए है। ड्राइवरी काम के दौरान जो पैसे इक्कठ्ठे हुए उसके बाद बैंक से लोन लिया और गांव में पानी की टंकी बनवाई। विधुत कनेक्शन के लिए विभाग की ओर से कोई मदद नही मिली। अब सद्वीक खेत में काम करने के साथ जानवरों की सेवा करता है। गांव में 4 घंटे बिजली के दौरान देर रात तो कभी अल सुबह टंकी में पानी भरने के घर से डेढ कि.मी पैदल चल मोटर चलाने के लिए आते है।
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