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नव संवत्सर नहीं, यह है सृष्टि का जन्म दिन…क्या है पौराणिक मान्यताएं आखिर क्यो कहा जाता है विक्रम संवत् जानिए इस खबर में…

locationबूंदीPublished: Mar 15, 2018 05:47:51 pm

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Suraksha Rajora

नववर्ष के रूप में पहचाने वाले चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को लेकर कई आध्यात्मिक व धार्मिक पहलू हैं। इस दिन को पर्व के समान उत्साह पूर्वक मनाया जाता

navavarsh 2018: 18 march Pratipada of Chaitra Shukla Paksha
बूंदी. 18 मार्च से भारतीय नववर्ष का आरंभ हो रहा है। बदलते दौर में भले ही हमने अंग्रेजी कलैण्डर को अपनाना शुरू किया है लेकिन आज भी तीज-त्योहार व मांगलिक कार्यक्रमों के लिए भारतीय संवत्सर पर आधारित पंचागों को ही प्राथमिकता दी जाती है। हमारी धडक़नें और जीवन नव संवत्सर के हिसाब से हैं। यह विशुद्ध रूप से हमारी परंपराओं से जुड़ा कलैण्डर है जिसमें वैज्ञानिकता है। सही मायने में यह सृष्टि का आरंभ माना जाता है।
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ईस्वी संवत् ईसा के जन्म वर्ष के हिसाब से प्रचलित है, जिसे अब धीरे-धीरे हमारे यहां भी अपना लिया गया है। लेकिन आज भी हमारे सब तीज-त्योहार हमारे भारतीय पंचाग के हिसाब से ही मनाए जाते हैं।वर्ष प्रतिपदा से नववर्ष शुरू होता है और साल भर के सभी त्योहार की तिथियों का निश्चय इसी के अनुरूप होता है। दरअसल इस्लाम ने चंद्रमा आधारित कलैण्डर अपनाया और अंग्रेजों ने सूर्य आधारित। जबकि हमारे कलैण्डर की वैज्ञानिकता में दोनों का ही समावेश है।
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आज शायद नई पीढी को चैत्र, वैशाख आदि महीनों का नाम और क्रम शायद याद भी न हो। लेकिन वैज्ञानिकता इन्हीं की है। जब विशाखा नक्षत्र होता है तो वैशाख, चित्रा नक्षत्र होता है तो चैत्र और इसी क्रम में हर माह के नाम और तिथियों के नाम हैं। ऐतिहासिक तथ्यों में जाएं तो उज्जैन के नरेश विक्रमादित्य ने पूरे भारत का शासन संभाला , उस दिन से वर्ष की गणना शुरू हुई। तब से ही इसे विक्रम संवत् कहा जाने लगा। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि काल गणना का वर्ष का अलग होता है और पंचाग अलग।
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वैदिक पुराण और धर्म शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि ही वह दिन है, जब जगत पिता ब्रह्म देव ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। सतयुग का प्रारंभ भी इसी तिथि को हुआ था। इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने शकों (समाज विरोधी शासक) पर विजय प्राप्त की थी। उसे चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम संवत का शुभारंभ किया था। यही वह कारण है कि सृष्टि रचना के दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है।
18 मार्च से विक्रम संवत 2075की शुरुआत होगी। नववर्ष के रूप में पहचाने जाने वाले चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को लेकर कई आध्यात्मिक व धार्मिक पहलू हैं। इसी कारण इस दिन को किसी पर्व के समान ही उत्साह पूर्वक मनाया जाता है।
नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और ऋतु काल के पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार, चर्मरोग आदि शारीरिक व्याधियां होने की संभावना नहीं रहती है तथा वर्षभर हम स्वस्थ और रोग मुक्त रह सकते हैं।
वसंत ऋतू प्रकृति के यौवन और श्रृंगार की ऋतू है, वृक्षों पर नए पुष्प और पात लगते हैं; चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखती है। किसानों को अपनी मेहनत का फल मिलता है – इसी समय फसलों की कटाई होती है । मौसम भी बहुत सुखद और संतुलित रहता है – न बहुत गर्म और न ही बहुत ठंड रहती है ।
सृष्टि का पहला दिन

मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण के लिए इसी दिन को चुना था। इसीलिए विक्रम संवत के नए साल का आरम्भ भी इसी दिन होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक अरब 97 करोड़ 39 लाख से अधिक वर्ष पूर्व इसी दिन संसार की रचना की थी और इसी दिन दुनिया में सबसे पहला सूर्योदय हुआ था। भगवान ने इस प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि कहा था। इसलिए यह सृष्टि का पहला दिन भी कहलाता है। माना जाता है कि आंवला नवमीं को ब्रम्हाजी ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रुप में किया था। आंवले को सृष्टि का पहला पौधा माना जाता है।
खुशहाली का प्रतीक होगा यह वर्ष

ज्योतिषाचार्य अमित जैन ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया साल शुरू होगा। इस वर्ष के राजा सूर्य हैं और शनि मंत्री होंगे। यह वर्ष सभी के लिए काफी सुखद रहेगा। विक्रम संवत 2075अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 18 मार्च से शुरू होगा। यह वह दिन है जब परमपिता ब्रह्मजी ने सृष्टि की शुरुआत की थी।
धार्मिक अनुष्ठानों की धूम

सृष्टि के पहला दिन के कारण गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। इस दिन संवत्सर की पूजा, चैत्र नवरात्र में घटस्थापन, ध्वजारोपण आदि विधान होते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष यानी आठ अप्रैल को वासंतिक नवरात्र (चैत्र नवरात्र) शुरू होगा। इस दिन गौरी पूजन ध्वजारोपण दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ धार्मिक कार्य शुरू हो जाएगें
पंचांग का परिवर्तन
ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरम्भ होता है। ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है।
जिस प्रकार अंग्रेजी कैलेंडर में हर वर्ष को एक संख्या द्वारा लक्षित किया जाता है, उसी प्रकार हिंदू कैलेंडर में हर नवीन संवत्सर को एक विशेष नाम से जाना जाता है, इस वर्ष इस संवत्सर का नाम विरोधकर्त हैनव संवत्सर नहीं, यह है सृष्टि का जन्म दिन
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