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माह-ए-रमजान:सिमटते घर आंगनों में व्यंजनों से हाथों की मिठास हो रही दूर…

बदलते वक्त के साथ अब सामुहिक रूप से घर पर सिवईयां बनाना बीते जमाने की बात हो गई

बूंदीJun 02, 2018 / 03:26 pm

Suraksha Rajora

बूंदी. बदलते वक्त के साथ अब सामुहिक रूप से घर पर सिवईयां बनाना बीते जमाने की बात हो गई। ईद पर मेहमानों को खास रूप से परोसे जाने वाली सिवइयां अब घर पर तैयार नही होती। अब रेडिमेड का जमाना है, ऐसे में लोग मार्केट से ही सिवंईया खरीदना पंसद कर रहें है।
 

 

इसे आधुनिकता कहे या समय की कमी लेकिन अब सिमटते घर आंगनों में व्यंजनों से हाथों की मिठास दूर हो रही है। इस मिठास की कमी मुस्लिम समुदाय के लोगो में खलती है,उनका कहना है कि सिवंइया तैयार होने में भले ही मेहनत लगती हो लेकिन हाथों से बनी सिवंइयो की बात ही कुछ ओर थी मार्केट में मिलने वाली सिवंइया का स्वाद उतना अच्छा नही है।
 

 

ईद, होली दिवाली या ओर कोई भी खास मोका हो तो घर के बने व्यंजन कुछ खास ही स्वाद देते है, खुद तैयार व्यंजनों से जैसे अपनत्व सा घुल जाता है लेकिन भाग दौड़ ओर समय का अभाव के चलते अब महिलाएं हर चींज रेडिमेड खरीदना पंसद कर रही है।
 

 

नजमा का कहना है कि घर में इतना समय नही मिल पाता ओर इसमें बढ़ी मेहनत लगती है। ईद के मोके पर बनी बनाई सिवईयां खरीदी जा रही है। समाज के लोगो के अनुसार अब घरों में बहुत कम लोग ही घरों में सिवईयां तैयार कर पाते है। इससे रेडिमेड सिवईयों का व्यवसाय बढ़ रहा है।

बाजार में सामान्य, अच्छी कलिटी, मोटी-बारिक सभी तरह की सिवईयां मिल रही है। किराना विक्रेता सुनील गुप्ता के अनुसार बाजार में 80रू से लेकर 90ओर क्वालिटी के मुताबिक रेट में सिवईयां मिल जाती है।
 

 

मेहनत से तैयार होती है सिवईयां-


पहले हर घर में सिवईयां बनाई जाती थी इसके लिए महिलाएं -एक माह पहले से ही तैयारी में जुट जाया करती। सभी परिवार की महिलाएं एक साथ बैठकर लकड़ी के पटिए पर हाथों से सिवइंया बनाती थी, फिर इन्हें बांस व झाडिय़ो पर सुखाया जाता, इसके लिए कांटो वाली झाडिय़ों का उपयोग किया जाता था।
 

 

बदलते समय के साथ अब मशीनों से सिवइंया तैयार होने लगी


नैनवा रोड़ स्थित शाहिद बताते है कि अब इतनी फुर्सत नही मिलती है, ओर जब से रेडिमेड का चलन बढ़ा है, तब से बाजार में आसानी से सिवंइया हर क्वालिटी में मिल जाती है।
 

इसके आगे फीके पकवान-

 

दूध, मावा मिश्री, मेवा से तैयार सिवइंया की बात ही अलग है। मुस्लिम परिवार ही नही बल्कि हर वर्ग में सिवंईयां पंसद की जाती है।
 
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