जीतो के सामाजिक सरोकार जीवन के अनेक क्षेत्रों में छाए हुए हैं। जैन समाज का एक बड़ा हिस्सा देश-विदेश में प्रवासी के रूप में प्रतिष्ठित है और अपने अपने क्षेत्रों में सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है। एक ओर उद्योग व्यापार के माध्यम से देश के विकास में भूमिका तथा दूसरी ओर समाज सेवा के माध्यम से सरकार का हाथ बंटाना ही इस संस्था को ऊंचाइयां देता है।
उन्होंने कहा धन कमाना बड़ी बात नहीं है, उसका नियोजन वृत्ति संस्कार कहलाता है। अर्जित धन का कितना-कितना अंश कहां-कहां खर्च होना चाहिए यही वृत्ति संस्कार है।
यह व्यक्ति जन्म से सीखकर नहीं आता, संस्कृति व सभ्यता ही यह संस्कार देती है। पूरे देश पर दृष्टि डालकर देखें तो जैन समाज अग्रणी दिखाई देगा। यहां तक कि अन्य सम्प्रदायों के धार्मिक स्थलों के रख-रखाव में भी जैनियों की भूमिका नजर आएगी।
तब यह भी चिन्ता का विषय रहना चाहिए कि जहां एक ओर बौद्ध धर्म का विश्व में प्रसार बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर जैन धर्म सिकुड़ता जा रहा है। आज हमारे संत भी अपने अपने सम्प्रदायों की निजी सम्पत्ति बन बैठे हैं। अन्य धर्म-सम्प्रदायों से तात्विक आदान-प्रदान घटता जा रहा है। हमें तो जैन सिद्धांतों को अन्य समुदायों से जोडऩे की महती आवश्यकता है। शुरुआत अपने कर्मचारियों से की जा सकती है।
कोठारी ने कहा विश्व परिदृश्य में छाए हुए हिंसा के बढ़ते कदमों को हम अहिंसा के प्रसार से कम कर सकते हैं। हमें खुद को आगे बढ़कर सभी धर्मों से जोडऩे की पहल करनी चाहिए। इस दृष्टि से चातुर्मास हमको संजीवनी दे सकता है, जहां सभी धर्मों के संत बैठकर देश की मूलभूत समस्याओं, परिवर्तन के नए आयामों, सामाजिक कुरीतियों पर चिंतन मनन करके आध्यात्मिक विकास का रोड मैप बना सकते हैं।
जीतो जैसी संस्था को सभी धर्मों के सिद्धांतों, रिवाजों और परम्पराओं के अध्ययन का वातावरण पैदा करने में भी भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
संतों के बीच सभी धर्मों के विशिष्ट ग्रन्थों के अध्ययन को प्रोत्साहित करना समय की मांग भी है और आध्यात्मिक दृष्टि से विकास को तकनीक के युग में प्रतिष्ठित भी रखेगी। आने वाली पीढ़ी को अन्य धर्मों के बीच जैन धर्म का विशिष्ट स्वरूप भी समझ में आएगा।
आज तो नई पीढ़ी को जैन धर्म में शिक्षित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी साहित्य उपलब्ध नहीं है। माता पिता अनभिज्ञ हैं तब पूरी नई पीढ़ी टी.वी. और मोबाइल फोन के हवाले है। तीसरी पीढ़ी मेरे हाथ से निकल रही है। मेरी नाक के नीचे सब कुछ बदल रहा है और मैं बच्चे की जिद के आगे समर्पित होने में गर्व महसूस करने लगता हूं।
आज पहले ही अल्पसंख्यक बनकर मुख्यधारा से बाहर आ गए हैं। नई व्यवस्था पर नए चिंतन के साथ समाज का सर्वांगीण विकास करना है तो नए संकल्प भी लेने होंगे। हमारे फल, हमारी छाया समाज को मिले, ऐसे बीजों का निर्माण करना है। हम ही विश्व को हिंसामुक्त समाज दे सकते हैं।