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ताने बाने की खटा-खट हुई बंद, संरक्षण का प्रयास नहीं होने से हुआ मोह भंग

locationबूंदीPublished: Apr 08, 2019 01:44:54 pm

राष्ट्रीय स्तर के उद्योग मेलों में पहचान बनाने के बाद भी संरक्षण नहीं मिलने से नैनवां का दरी-पट्टी उद्योग समाप्त हो गया।

taane baane kee khata-khat huee band, sanrakshan ka prayaas nahin hone

ताने बाने की खटा-खट हुई बंद, संरक्षण का प्रयास नहीं होने से हुआ मोह भंग

सूर्यनारायण शर्मा
नैनवां. राष्ट्रीय स्तर के उद्योग मेलों में पहचान बनाने के बाद भी संरक्षण नहीं मिलने से नैनवां का दरी-पट्टी उद्योग समाप्त हो गया। नैनवां की दरी बुनने के लिए स्थापित सभी घोड़ी-मकोड़े उखाड़ बुनकर अपने घरों में सिमटकर बैठ गए। कस्बे में जहां पहले बुनकरों के घर-घर घोड़ी-मकौड़े पर दरी बनने की खटा-खट सुनाई देती थी, जो अब इस व्यवसाय से मोह भंग होने के बाद सामानों को समेटकर रख दिया। बुनकरों व उनके व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार भले ही खूब ढिंढोरा पीटती आ रही हो, लेकिन प्रसिद्धि मिलने के बाद भी सरकार नैनवां के दरी-पट्टी उद्योग को संरक्षण नहीं दे पाई। दो दशक पहले तक इस धंधे से कई परिवार जुड़े हुए थे। पहले बुनकरोंं के मोहल्लों व पेड़ों की छांव में जगह-जगह घोड़ी-मकोड़ों पर दरी-पट्टी की बुनाई के ताने-बाने की खटा-खट चला करती थी, इस कुटीर उद्योग को संरक्षण के कभी प्रयास नहीं होने से एक तो कच्चे माल का टोटा व दूसरा मजदूरी कम मिलने से बुनकर परिवारों का इस घंधें से मोह भंग होता चला गया। 6 माह पहले तक तीन स्थानों पर घोड़े-मकोड़े देखने को मिल रहे थे जो भी अब उखड़ गए।इनमें से एक घोड़ी-मकोड़ा गढपोल के पास तथा दो घोड़ी-मकोड़ा राजीव कॉलोनी में चल रहे थे।
गढपोल दरवाजे के पास यासीन मोहम्मद व मुन्ना मोहम्मद साथ काम करते है। राजीव कॉलानी में एक पर बन्नाभाई व उसकी पत्नी तो दूसरे पर हलीम भाई व उसकी पत्नी दरी-पट्टी बुनाई करते थे।
ऐसे सिमटता गया
पहले नैनवां में टोंक खादी ग्रामोद्योग समिति ही कच्चा माल देकर दरी-पट्टी व डोरिया बनवाती थी। समिति के माध्यम से बुनाई का भुगतान मिलता था।
समिति के सामने कच्चे माल की समस्या पैदा हुई तो उसने बुनकरों के रोजगार से हाथ खींच लिया। उसके बाद भी अधिकांश बुनकरों ने अपने स्तर पर ही कच्चे माल का जुगाड़ कर अपने धंधे के ताने-बाने को टूटने से रोकने का प्रयास किया, लेकिन अधिक दिनों तक नहीं चल पाए। पहले बुनाई का इतना काम मिलता था कि फुर्सत नहीं मिलती थी। इस उद्योग को समय रहते संरक्षण मिल जाता तो इसे बचाया जा सकता था।
बुनकरों की जुबानी…
42 वर्ष तक इस काम से जुड़े रहे। एक समय था जब दिल्ली में लगने वाले उद्योग मेले में नैनवां की दरी मांग हुआ करती थी। हम कई बार उद्योग मेले में अपनी दुकानें लेकर गए। सरकार की तरफ से संरक्षण नहीं मिलने से अब खरीदने वाले नहीं रहे। जिससे काम बंद करना पड़ा।
हनीफ मोहम्मद, बुनकर
72 वर्ष के हो गए। 15 वर्ष की उम्र में दरी बनाने का काम शुरू कर दिया था। तब कमाई भी अच्छी थी। मशीनी युग में धीरे-धीरे मांग कम होती चली गई।पहले खादी-ग्रामोद्योग भंडारों से कच्चा माल मिलता था। तब खादी भंडार भी खरीदारी करता था। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए था।
फकीर मोहम्मद, बुनकर
अभी 71 वर्ष के है। 12 वर्ष की उम्र से दरी बुनते आ रहे थे। बुनकरों को संरक्षण नहीं मिल पाया। नैनवां की दरी के कद्रदान कम होते चले गए, बुनाई का काम कम होता चला गया। मेरे जैसे कई ऐसे अन्य और भी बुनकर जिन्होंने घरों के आगे लगे घोड़ी-मकोड़ों को हटा लिया।
मोहम्मद हबीब, बुनकर

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