scriptरामगढ़ अभयारण्य में फिर गूंजेगी टाइगर की दहाड़ | The roar of the Tiger will reverberate in Ramgarh Sanctuary | Patrika News

रामगढ़ अभयारण्य में फिर गूंजेगी टाइगर की दहाड़

locationबूंदीPublished: Oct 14, 2019 03:47:00 pm

Submitted by:

Devendra

रामगढ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में बाघों को शिफ्ट करने योजना से दो दशक बाद दहाड़े सुनाई देने लगेगी।

रामगढ़ अभयारण्य में फिर गूंजेगी टाइगर की दहाड़

रामगढ़ अभयारण्य में फिर गूंजेगी टाइगर की दहाड़

नैनवां. रामगढ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में बाघों को शिफ्ट करने योजना से दो दशक बाद दहाड़े सुनाई देने लगेगी। रामगढ़-विषधारी के जंगल को 1982 में वन्यजीव अभयारण्य दर्जा दिया था। दर्जा मिलने तक इस जंगल में 14 बाघों व 90 बघेरों की उपस्थिति थी। अभयारण्य में 1985 से ही बाघों की संख्या में कमी आती गई। 1999 तक एक ही बाघ बचा था जो भी लुप्त हो जाने से अभयारण्य बाघ विहीन हो गया था। बाघों से सूने पड़े अभयारण्य को प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाकर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन एथॅरिटी (एनटीसीए) द्वारा रणथम्भौर से 6 बाघों को रामगढ में शिफ्ट करने की अनुमति देने से अभयारण्य में बीते दिन लौट आएंगे। बीस वर्ष पहले बाघों का कुनबे का सफाया होने के बाद से अभयारण्य में कोई भी बाघिन युवराज को जन्म देने नही आ रही थी। दूसरे अभयारण्य से साम्राज्य की तलाश में कभी कोई युवराज अपने पुरखों के घर आए भी तो जंगल का अतीत कोई सुखद तस्वीर पेश नही पाया। वह कुछ माह का मेहमान बनकर वापस लौटते रहे। एनटीसीए का अभयारण्य में बाघों का विस्थापन करने की अनुमति देकर उनके पुरखों के घर में एक बार फिर बहार लाने का अच्छी पहल सााबित होगी।
आते-जाते रहे
रणथम्भौर से निकल कर बाघ रामगढ- विषधारी में अपने सामा्रज्य की तलाश में आते रहे है। 2007 से पिछले वर्ष तक तीन बाघा आए और तीनों ही मेहमान की तरह रह कर वापस लौट गए। 2007 में आया बाघ युवराज तो वापस लौटतेे समय लाखेरी के पास मेजनदी की कंदराओं में शिकारियों के हत्थें चढ गया। पांच वर्ष बाद फिर बाघ 62 आया जो कुछ माह तक रामगढ में बीताकर वास लौट गया। 2017 में आया बाघ 91 लगभग एक वर्ष तक अभयारण्य में रहा जिसको अप्रेल माह में कोटा के मुकंदरा टाइगर रिजर्व में शिफ्ट कर दिया।
प्रकृति अनुकूल
अरावली की पहाडिय़ों के सघन क्षेत्र बाघों का जच्चा घर होने से वन्यजीवों की भरमार के कारण 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले रामगढ-विषधारी को वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया था। अभयारण्य को बाघों का जच्चा घर का दर्जा प्रदान करने के लिए प्रकृति का ही योगदान रहा। रामगढ किले की पहाडिय़ो के नीचे बनी लम्बी सुरंगे कभी बाघों की मांदें है। जिनके पास जाने से ही कंपकंपी छूटती है। मांदे ही बाघों का प्रश्रय स्थल हुआ करती है। ऊंचे-ऊंचे पर्वत सुरक्षा परकोटे की तरह खड़े है तो प्रकृति ने वन्यजीवों की प्यास बुझाने के लिए अभयारण्य के बीच में बहती मेज नदी दे रखी है। जिस पर जगह-जगह एनिकटों का भी निर्माण हो रहा है।
ऐसे हुआ बर्बाद
अभयारण्य का दर्जा मिला तक इस जंगल में 14 बाघों व 90 बघेरों की उपस्थिति बताई थी। अन्य जीवों की अगिनीत संख्या थी। 1985 से ही बाघों की कमी आती गई। 1999 की गणना में बाघ लुप्त हो चुके थे। 15 अगस्त 1991 में बाघ के शिकार के आरोप में गिरफ्तार मोतीपुरा निवासी रंगलाल मीणा की वन विभाग की अभिरक्षा में मौत के बाद विभाग ने अभयारण्य को लावारिस छोड़ दिया। यही से अभयारण्य के बर्बादी के दिन शुरू हो गए थे।
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