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देश भर में फैली है नैनवां के मावे के पेठे की मिठास

मांग इतनी है कि एडवांस ऑर्डर देकर कराना पड़ता है बुक

बूंदीNov 30, 2020 / 08:13 pm

Abhishek ojha

देश भर में फैली है नैनवां के मावे के पेठे की मिठास

नैनवां. बीकानेर की भुजिया, ब्यावर की तिलपट्टी, मथुरा के पेढ़े की तरह नैनवां में बनने वाले मावा का पेठा मिष्ठन के स्वाद में देशभर में अपनी पहचान बना चुका है। जिस प्रकार आगरा का पेठा प्रसिद्ध है, उसी प्रकार नैनवां का पेठा भी लोगों की पसंद बना है। नैनवां के पेठे की तरह पहले नैनवां की बनी दरी-पट्टी को भी देश में प्रसिद्धि मिली थी। बुनकरों के नहीं रहने से दरी-पट्टी उद्योग तो सिमट गया, लेकिन नैनवां का पेठे का स्वाद आज भी ज्यों का त्यों ही बना हुआ है। नैनवां के पेठे की आज भी इतनी मांग है कि पेठा बनाने वाले हलवाइयों की तीसरी पीढ़ी भी आज भी पेठा बनाने का व्यवसाय नहीं छोड़ रहे। नैनवां के पेठे की इतनी मांग रहती है कि पहले से ऑर्डर बुक कराना पड़ता है। रक्षाबंधन, दीपावली, होली सहित अन्य त्यौहारों पर तो आठ दिन से पहले ऑर्डर करना पड़ता है। तब ही पेठा हाथ लग पाता है। नैनवां के पेठे का स्वाद एक बार चख लेता है और जब भी नैनवां आए या नैनवां में रहने वाले रिश्तेदार उनके यहां मिलने जाए तो नैनवां का पेठा मंगवाना नहीं भूलते। नैनवां में दुकानों पर बनने वाले पेठे में से तीन चौथाई पेठा प्रतिदिन अन्य शहरों में ही जा रहा है। पेठा ऐसा मिष्ठान है जो कई दिनों तक खराब नही होता।
ऐसे बनाया जाता पेठा
पेठा बनाने के लिए दूध से मावा तैयार करना पड़ता है। मावा तैयार होने के बाद उसमें कुछ मात्रा में आरारोठ मिलाना पड़ता है। दोनों के मिक्चर को परात या अन्य बर्तन में जमाकर कतली के रूप में काटा जाता है। कतलियों को धीमी आंच में घी में तला जाता है। तलने के बाद कतलियों को शक्कर की चासनी पिलाई जाती है। पेठा बनाने वाले हलवाईयों का कहना है कि बाहर से आने वाले मावे से पेठा नहीं बनता। दुकान पर ही दुध से सीधा मावा बनाना पड़ता है। पहले हलवाईयों की दुकान पर ही पेठा बनता था। नैनवां के पेठे की इतनी मांग हो गई कि जिससे शादी-समारोह के साथ अन्य समारोह में भी खाने के मीनू में एक मिठाई के रूप में पेठा भी बनने लगा है।
आजादी से पहले से बनता आ रहा
नैनवां का पेठा बनाने की शुरुआत आजादी से पहले की है। पांच दशक पहले तक पेठा की गिनती की दुकानें थी जबकि अब कई दुकाने हो गई। चालीस के दशक में पेठा बनाने की सबसे पहली शुरूआत नैनवां के प्रसिद्ध हलवाई बजरंगलाल भट्ट ने की थी। उसके बाद नाथूलाल भरनी वाले, बाबूलाल जैन व रामनाथ माली ने पेठा बनाना शुरू किया। इन्होंने नैनवां के कई हलवाईयों को पेठा बनाने की कला भी सिखाई। बजरंगलाल भट्ट के निधन के बाद उनके पुत्र शिवदत्त शर्मा भी पेठा की दुकान लगाने लगे। शिवदत्त शर्मा के निधन के बाद दुकान की बंद हो गई। जबकि नाथूलाल भरनी वाले की तीसरी पीढ़ी आज भी पेठा की दुकान लगा रहे है। नाथूलाल भरनी वालों का 1979 में निधन हो जाने के बाद उनके पुत्र 72 वर्षीय जयकुमार भरनी वाले यही व्यवसाय कर रहे है। उनके काम में उनके पुत्र महावीर भरनी वाले हाथ बंटाते है। बाबूलाल जैन का 2001 एक में निधन होने के बाद अब उनके छोटे पुत्र सुरेश जैन पेठा का व्यवसाय कर रहे है। रामनाथ माली 72 वर्ष के हो चुके रामनाथ माली आज भी पेठा बनाने का व्यवसाय कर रहे है। उनके काम में उनका पुत्र हाथ बंटाता है। इनके अलावा हलवाइयों की अन्य दुकानों पर भी पेठा बनाया जाता है।

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