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उपेक्षा का दंश झेल रही बालाजी की बावड़ी

locationबूंदीPublished: May 19, 2019 09:28:55 pm

परंपरागत जल स्रोतों की अनदेखी और दुर्दशा देखनी हो तो जजावर आइए। किसी समय जल संरक्षण की दृष्टि से समृद्ध रहे कस्बे में झील, कुएं, तालाब और ऐतिहासिक बावडियां हैं जो अब उपेक्षा का दंश झेल रही है।

upeksha ka dansh jhel rahee baalaajee kee baavadee

उपेक्षा का दंश झेल रही बालाजी की बावड़ी

जजावर.परंपरागत जल स्रोतों की अनदेखी और दुर्दशा देखनी हो तो जजावर आइए। किसी समय जल संरक्षण की दृष्टि से समृद्ध रहे कस्बे में झील, कुएं, तालाब और ऐतिहासिक बावडियां हैं जो अब उपेक्षा का दंश झेल रही है।जबकि यही जलाशय किसी समय लोगों की प्यास बुझाने का प्रमुख जरिया हुआ करते थे। वर्षा जल से लबालब रहने वाले इन परंपरागत जल स्रोतों का सूखा, अकाल और अल्पवृष्टि की स्थिति में बहुत महत्व हुआ करता था। पहले लोग भू-जल स्तर और जल स्रोतों के विषय में बहुत संवेदनशील थे।
हाड़ा वंश के राजा मालदेव की पत्नी रानी बदन कंवर ने विक्रम सम्वत् 1661-62 पहले बावड़ी व उसके उपरान्त कुंड का निर्माण करवाया था। कुंड निर्माण के दौरान एक ही खान का पत्थर प्रयोग में लिया था। कस्बे के प्राचीन धरोहर कुंड बावड़ी की वर्तमान स्थिति को देखा जाए तो चारों और गंदगी का अंबार देखा जा सकता है। यहां जगह-जगह पर झाडिय़ां उग आई। सफाई के किसी भी प्रकार के प्रयास नहीं किए जा रहे। समय के साथ कम वर्षा और भू-जल स्तर गिरने से यह बावड़ी अब पूरी तरह सूख चुकी।

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