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बूंदी

नश्तर की तरह चुभती हवा का सामना एक चादर से, आग का दरिया पार करने जैसा हो गया रात काटना…

खुले आसमां तले रात गुजारने को मजबूर ‘मजदूरÓ, कोई ठेले पर तो कोई पट्टियों पर सो रहा नि:शक्तजनों के हो रहे हाल-बेहाल

बूंदीDec 08, 2017 / 08:17 pm

Suraksha Rajora

Winter sleeps in laborer open sky

sleeps in laborer

बूंदी. जब हम तमाम सुविधाओं के साथ घरों में हीटर और रजाई के साथ दुबके होते है। ‘एक दुनियाÓ ऐसी भी होती है, जो फुटपाथ पर सारी रात सर्दी में जिंदगी के लिए संघर्ष करती रहती है। कोई एक शॉल में तो कोई एक फटे हुए कंबल में सर्दी से दो-दो हाथ करता दिखता है। सर्दी के कोप में कई जगह इंसान और जानवर का फर्क तक खत्म हो जाता है। दोनो साथ साथ बस किसी तरह सुबह होने का इंतजार करते दिखते है। ज्यों ज्येा रात गहराती है, सड़को पर कफ्र्यु जैसे हालात होते है।
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हाड़ कपाने वाली सर्दी, मजदूर और भिखारियों की तो मानों शामत आ गई। इनका तो धरती बिछोना व आसमान ही ओढऩी है। पत्रिका टीम ने जब शहर की सड़कों का जायजा लिया तो ये लोग खुले आसमान तले रात गुजारते दिखाई पड़े। मजदूरी कर अपना जीवन यापन करने वाले लोग, बुजुर्ग जहां ठोर मिल रही वहीं इस ठिठुराने वाली सर्दी में खुले आसमान नीचे सोते दिखे। रात दस बजे बाद जहां बाजारों में सन्नाटा नजर आया वहीं यह फुटपाथ पर दुबके हुए थे। जबकि शहर बंद कमरों में रजाइयों के बीच दुबका हुआ था।
सड़कों पर आलम यह रहा कि कोई ठेले पर तो कोई पट्टियों पर सोता हुआ नजर आया। खोजागेट गणपति मंदिर के निकट तो एक बुजुर्ग पेड़ के नीचे कांपता मिला।
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मावठ से बढ़ी गलन
मावठ से यहां गलन बढ़ गई। कई जगहों पर लोगों ने ‘अलावÓ को भी सहारा बनाया। रैन बसेरा दूर होने की वजह से कई जने बस स्टैंड, कोटा रोड एवं इंद्राबाजार के फुटपाथ पर सो गए। यहां किसी के पास कम्बल नहीं था तो कोई फटेहाल टाट में ठिठुरता दिखाई दिया। दो स्थानों पर निशक्तजनों के हाल बेहाल थे। यहां कोटा रोडपर मौजूद लोगों ने बताया कि मजदूरी कर पेट पालते हैं। गर्मी में कोई परेशानी नहीं आती। सर्दी में रात काटनी मुश्किल हो जाती है।

गैलरी में सोते मिले
सामान्य चिकित्सालय के यहां स्थित फिजीयौथेरेपी विभाग के बाहर स्थित गैलरी में कई जने सो रहे थे। इनमें एक नि:शक्तजन सिसवाली के राजू सुमन ने बताया कि हमारा तो भगवान ही रखवाला है। सर्दी तेज है। देवली निवासी शिवराज ने बताया कि हर मजदूरी करने आते हैं। कम्बल मिल जाए तो गलन से बच सकते हैं।

कम्बल नहीं है साÓब
रेडक्रॉस के बाहर की दुकानों पर भी लोग सोते हुए मिले। उनसे पूछा तो बताया कि साÓब कहां जाए। ऊपर वाला सब देखा रहा है। बीच में उनके श्वान भी सो रहा था।अहिंसा सर्किल के सामने स्थित मेडिकल की दुकान के बाहर एक रजाई में परिवार सोता मिला। पूछने पर बताया कि कम्बल नहीं है।

आगे आई संस्थाए-
शहर में ऐसे लोगो की मदद को लेकर अब संस्थाए आगे आ रही है। असहाय लोगों के लिए कबंल वितरण कर अपना सहयोग दे रही है।
नगर परिषद, बूंदी आयुक्त का कहना है कि शहर के रैन बसेरे २४ घंटे खुले हुए हैं। सरकार की गाइड लाइन के अनुसार पूरी सुविधा दी जा रही है।

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