बुरहानपुर में 16 साल बाद 1967 में भारतीय जनसंघ ने तोड़ा था कांग्रेस के जीत का किला
बुरहानपुरPublished: Oct 12, 2023 09:42:05 pm
बुरहानपुर में भाजपा, कांगे्रस तो निर्दलीयों का भी रहा बोलबाला
- बुरहानपुर में तीन बार निर्दलीय भी जीते
- इलेक्शन व्यू


बुरहानपुर में 16 साल बाद 1967 में भारतीय जनसंघ ने तोड़ा था कांग्रेस के जीत का किला
बुरहानपुर. विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के बाद अब हर जगह चुनावी चौपाल लग रही है। सभी की जुबां पर बस बाते चुनाव की है। फिलहाल बुरहानपुर और नेपानगर में सवाल एक ही है किसे टिकट मिल रहा। राजनीतिक दलों ने अब तक किसी के नाम पर मुहर नहीं लगाई। लेकिन हम इस बीच आपको चुनावी इतिहास की ओर भी ले चलते हैं। इससे यह पता चलेगा की कौनसी पार्टी का क्या परफारमेंस रहा। बात भी 1951 से लेकर 2020 के उपचुनाव तक होगी।
विधानसभा चुनाव में बुरहानपुर की राजनीति अन्य शहरों से बहुत जुदा है। कभी यहां पार्टी को लोगों ने तवज्जो दी तो कभी प्रत्याशी को देखकर वोट डाले। 1951 से अब तक चुनाव पर नजर डाले तो इस स्थिति से तस्वीर बिलकुल साफ नजर आती है। शुरुआती दौर में 1951 से 62 तक कांग्रेस का जादू चला, 1967 में भारतीय जन संघ से चुनावी मैदान में भारतीय जन संघ पार्टी से उतरे परमानंद गोविंदजीवाला ने कांग्रेस के जीत के किले को ढहा दिया। इसके बाद कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा रही। लेकिन इस बीच निर्दलीय चुनाव लडऩे वालों का भी दौर आया जब लोगों ने प्रत्याशी देखकर वोटिंग की। ठाकुर शिवकुमार, महंत उमेश मुनि और सुरेंद्रसिंह इसके उदाहरण है, जिन्होंने बुरहानपुर विधान सभा चुनाव जीतकर इतिहास रचा।
इन्होंने निर्दलीय उतरकर दिखाया दम
सबसे पहले शिवकुमारसिंह ने कांग्रेस से, जेडी से चुनाव लड़ा फिर निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे और चुनाव भी जीता। फिर 1993 में महंत उमेश मुनि ने निर्दलीय मैदान में उतरकर चुनाव जीता। इसके बाद 2018 के चुनाव में सुरेंद्रसिंह को कांग्रेस से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय उतरे और 5 हजार वोट से जीत ले गए।
1951 से 2003 तक शाहपुर विधानसभा भी रही केंद्र बिंदू
शााहपुर की स्थिति भी बहुत भिन्न रही। यहां 1951 से 2003 तक शाहपुर विधानसभा सीट भी हुआ करती थी, जो बाद में परिसिमन के बाद बुरहानपुर में आ गई। प्रदेश में राजनीति के अखाड़े में धाक जमा चुके दिवंगत सांसद नंदकुमारसिंह चौहान शाहपुर विधानसभा सीट से 1980 में धैर्यशील देशमुख से चुनाव हारने के बाद फिर मैदान में खड़े हुए और लगातार तीन बार विधायक चुने गए। उन्होंने कई दिग्गज नेताओं को हराया। इधर 1977 से विधानसभा सीट के स्वरूप में आई नेपानगर विधानसभा में 1993 तक दो नेताओं का राज रहा, इसमें कांग्रेस से तनवंतसिंह कीर और जनसंघ से भाजपा तक सफर करने वाले प्रोफेसर ब्रजमोहन मिश्र का।