बुरहानपुर में श्री बालाजी महाराज का पंद्रह दिवसीय मेले की परंपरा है। दस दिन तक बालाजी महाराज शहर में रथ पर भ्रमण करते हंैं और दशहरे के दूसरे दिन तीन दिन का सतियारा घाट पर मेला रहता है। जहां प्रदेश और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में भक्त दर्शन को आते हैं। लेकिन इस बार कोरोना के चलते मेले की अनुमति नहीं दी। बालाजी महाराज मंदिर के गर्भगृह में ही विराजमान रहे। भक्तों ने मंदिर पहुंचकर दर्शन किए।
कुंभ स्नान की विशेष महत्वता
बालाजी उत्सव समिति के अध्यक्ष आशीष भगत ने बताया कि बालाजी महाराज की ताप्ती नदी पर कुंभ स्नान की विशेष महत्वता है। बालाजी महाराज यहां तीन दिन तक शाही स्नान करते हैं, जिसे कुंभ स्नान कहा जाता है। सालभर में यह पहला मौका होता है, जब भक्त बालाजी महाराज के चरण स्पर्श कर पाते हैं। बड़ी संख्या में भक्त यहां बालाजी महाराज के साथ गोता लगाकर पुण्य लाभ लेते हैं।
अब 30 को चांदनी चौक में विराजेंगे
उत्सव समिति के मुताबिक प्रशासन से मेले की अनुमति नहीं मिली। रथ निकालने की अनुमति सशर्त मिली, जिसे समिति ने पूरा किया। ताप्ती घाट पर अनुमति नहीं रही अब 30 अक्टूबर को चांदनी चौक (मंदिर प्रांगण) में बलाजी महाराज विराजमान होकर दर्शन देंगे।
अंग्रेज शासन में भी चलती रही परंपरा
बालाजी मेले की परंपरा लगतार कायम रही। मुगल राज से लेकर अंग्रेजों के शासन तक बालाजी मेले रथ की परंपरा और मेले लगने की परंपरा कायम रही। रथ निकले से पहले ब्रिटिश शासन में स्थानीय अफसर भी मंदिर आते थे।