scriptरूस,यूक्रेन युद्ध के नाम पर मुनाफाखोरी का धंधा, 28 रु तक बढ़े तेल के दाम | Profiteering business in the name of Russia-Ukraine war, oil prices in | Patrika News

रूस,यूक्रेन युद्ध के नाम पर मुनाफाखोरी का धंधा, 28 रु तक बढ़े तेल के दाम

locationबुरहानपुरPublished: Feb 27, 2022 12:27:08 pm

Submitted by:

Amiruddin Ahmad

– प्रशासन को खबर तक नहीं- भाव बढऩे के पीछे युद्ध को कारण बता रहे व्यापारी

Profiteering business in the name of Russia-Ukraine war, oil prices increased by Rs 28

Profiteering business in the name of Russia-Ukraine war, oil prices increased by Rs 28

बुरहानपुर. चार दिनों से रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बहाने बाजार में तेल व्यापारी जमकर मुनाफाखोरी कर रहे है। युद्ध के कारण तेल के भाव में तेजी होने का बहाना व्यापारी कर रहे है, जबकि प्रशासनिक अफसर इस बात से इंकार कर रहे है। प्रतिदिन 2 से 3 रुपए तक तेलों के दामों में बढ़ोतरी हो रही है। चिल्लर विक्रेता लगभग 10 रुपए तक अधिक शुल्क वसूल रहे है।
तेल व्यापारी मोहम्मद नबील ने कहा कि रूस और यूक्रेन के तनाव के बाद से ही तेल के दामों में बढ़ोरी हो रही है, युद्ध शुरू होने के बाद बाजार में भी तेल के भाव तेजी से बढ़े है। क्योकि 60 प्रतिशत खाद्य तेल देश में विदेशों से ही पहुंचता है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी असर होने से एक माह में 28 रुपए तक दामों में बढ़ोतरी होने से खपत भी कम हो गई।5 किलो तेल खरीदने वाला ग्राहक अब 2 से 3 किलो तेल ही खरीद रहा है।
अफसर बोले युद्ध का नहीं कोई असर
एसडीएम काशीराम बड़ोले ने कहा कि रूस और यूक्रेन युद्ध का कोई असर नहीं है। अगर बाजार में तेलों के दामों में बढ़ोरी हुई तो दिखवाते है। तेल के दाम क्यो बढ़ रहे है दिखवाते है।अगर एमआरपी से अधिक रेट में खाद्य सामग्री बेची जाएगी तो कार्रवाई करेंगे।जबकि खाद्य सुरक्षा अधिकारी कमलेश डावर ने कहा कि तेलों के दाम मांग और आपूर्ति पर निर्धारित होते है, भाव में बढ़ोतरी होना युद्ध कारण नहीं है। बाजार में दौरा कर भाव देखेंगे।
10 रुपए तक मुनाफाखोरी
तेल की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी भी जमकर हो रही है। थोक विक्रेताओं की तरफ से रेट बढऩे के बाद चिल्लर विक्रेताओं ने भी दोगुना दाम बढ़ा दिए। सोयाबीन तेल का थोक भाव 153 रुपए होने के बाद भी बाजार की दुकानों पर 164 रुपए प्रति लीटर भाव बेचने से 10 रुपए तक अधिक कमाई की गई। युद्ध के मौके को अवसर के रूप में देखते हुए कुछ विक्रेता जमाखोरी भी कर रहे है, लेकिन इस तरफप्रशासन का ध्यान नहीं है।
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