नेताओं की बेईमानी करने की हिम्मत इसलिए हो रही है कि उन्हें जनता के भीतर अपने से भी बड़े बेईमान नजर आ रहे हैं
कल सांझ से भ्रमित हैं। सस्पेंस में पड़े हैं। सोचते-सोचते दिमाग का दही हो चुका है पर समझ नहीं पा रहे। हम तो जनता-जनार्दन को ही अपना माई-बाप-भगवान मानते हैं सो आप ही सहायता करो। हमारी परेशानी का सबब दो मुहावरे हैं- पहला कहता है कि जैसा राजा वैसी प्रजा और दूसरे का कहना है कि प्रजा को उसी के ‘माजने’ के राजा मिलता है अर्थात् प्रजा मूर्ख और बेईमान है तो राजा भी वैसा ही होगा। दोनों बातें एक दूजे को काटती है। चलिए पहले पर विचार करते हैं। कुछ ज्ञानीजन कहते हैं कि अगर अपने उद्गम स्थल से ही नदी प्रदूषित हुई तो आगे प्रदूषण और भी बढ़ जाएगा। अर्थात् राजा लोग ही भ्रष्ट है तो फिर नौकरशाही और पूरा तंत्र ही भ्रष्ट होगा।
बेईमान राजा अपनी प्रजा को नैतिकता का उपदेश दे ही नहीं सकता। बात में दम है इसीलिए कुछ ज्ञानी कहते हैं कि जब तक अपने देश के नेता और मंत्रीगण भ्रष्टाचार करते रहेंगे तब तक अपने देश का सिस्टम सुधर ही नहीं सकता। लेकिन दूसरी तरफ कुछ लोगों का मत है कि जब जनता ही भ्रष्ट है तो फिर ‘राजा’ ईमानदार कैसे रह सकता है।
अब हमने यह कह दिया कि दूसरा मुहावरा ज्यादा ठीक है तो फिर कोई न कोई बेईमान अपने आपको ईमानदार दर्शाने के लिए बड़े मजे से हमारी तरफ जूता उछाल सकता है। लेकिन आज के समय में सत्य यही है कि नेताओं की बेईमानी करने की हिम्मत इसलिए हो रही है कि उन्हें जनता के भीतर अपने से भी बड़े बेईमान नजर आ रहे हैं। अब एक छोटा-सा किस्सा लीजिए। आप ट्रेन में सफर करते हैं वहां चाय की दर पांच रुपए और कॉफी की दर सात रुपए निर्धारित है लेकिन आमतौर पर दस रुपए वसूले जाते हैं और कॉफी के साथ आपको एक रुपए का बिस्कुट पकड़ा दिया जाता है।
यानी बड़े मजे से दो रुपए ज्यादा लिए जा रहे हैं। यह बेईमानी कौन कर रहा है? रेलमंत्री नहीं बल्कि वह ठेकेदार कर रहा है जो अपने आपको ‘जनता’ कहता है। इसी तरह बड़े-बड़े शोरूम में लूट होती है। ब्रान्डेड जूते या टी शर्ट लेने किसी मॉल में जाइए। हरेक चीज पर टेग लगा रहता है बारह सौ निन्यानवें, नौ सौ निन्यानवे। और जब आप बिल चुकाते हैं तो एक रुपया कभी वापस ही नहीं दिया जाता।
इस तरह एक दिन में करोड़ों रुपए ‘जनता’ से ज्यादा वसूल कर लिए जाते हैं। यही खेल टोल बूथों पर चल रहा है। कई केन्द्रों ने न जाने कब ही अपनी लागत वसूल कर ली लेकिन अभी तक पुरानी दरों पर वसूली की जा रही है। अगर आप इस जबरन वसूली का विरोध करते हैं तो फिर आपकी शामत आ सकती है। यानी कुल मिलाकर ऐसी छोटी-छोटी चोरी और बेईमानी कौन कर रह हैं- ‘जनता’। जब ‘जनता’ ही बेईमानी में लिप्त है तो फिर उसे ईमानदार ‘राजा’ कहां मिलेंगे। अब तो लगता है कि हम सब मिल कर ही अपने देश की ‘वाट’ लगा रहे हैं। क्या यह देश नटवरलालों का बनता नहीं जा रहा?
राही