भारतीय रिटेल सेक्टर के ज्यादा आकर्षक व लुभावना होने के बावजूद ये व्यवसाय असंगठित हैं क्योंकि इन्हें छोटी दुकानों के माध्यम से चलाया जाता है। अधिकांश किराना दुकान/स्टोर्स परंपरागत कर भुगतान प्रणाली के अंतर्गत व्यवस्थित नहीं हैं, और इसलिए यहाँ इनवॉइसों, रिकॉर्डों का सीमित रखरखाव तथा टैक्सेशन (कराधान) नियमों का न्यूनतम ज्ञान देखा जा सकता है, लेकिन जीएसटी के लागू होने से छोटे व्यापारियों और किराना स्टोर्स को संगठित रिटेल क्षेत्र का हिस्सा बनने का एक सुनहरा मौका मिलेगा।
पिछली कर प्रणाली के तहत, अधिकांश किराना स्टोर्स आसानी से कर देने से बच जाते थे। उनकी इन्वेंट्री (माल सूची) और बिक्री पर नज़र रखने का कोई तरीका नहीं था। किराना स्टोर का लेनदेन कच्चे में होता था यानी वे खरीदार को चीजें इनवॉइस के बिना बेचते थे और उनकी बही (सेल्स बुक) में इस बिक्री लेनदेन का कोई रिकॉर्ड नहीं होता था। हालांकि, जीएसटी लागू होने के साथ इस तरह से बच निकलना अब कठिन हो गया है क्योंकि स्रोत से लेकर गंतव्य तक (यानी कारखाने से निकल कर छोटे दुकान तक पहुँचने वाली) सभी चीजों का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में रखा जा रहा है। टैक्सेबल सप्लाई के प्रत्येक इनवॉइस को जीएसटीएन के पोर्टल पर अपलोड करना होगा और उसे खरीदारों, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं द्वारा स्वीकार करना होगा। यही कारण है कि जीएसटी अब ज्यादातर किराना स्टोर मालिकों के लिए एक बुरे सपने की तरह बन गया है। हालांकि, विभिन्न आय वाले लोगों के लिए अलग-अलग नियम हैं।
जीएसटी, डिजिटल सिस्टम पर आधारित है जिसमें व्यापारियों द्वारा इनवॉइसिंग, अकाउंटिंग (लेखांकन) और पेमेंट (भुगतान) के संदर्भ में तकनीक को अपनाने की आवश्यकता है। यह टैक्स रेट और इनपुट टैक्स क्रेडिट में एकरूपता लाता है। लेकिन केवल 20 लाख और 10 लाख की टर्नओवर सीमा वाले व्यापारियों को (विशेषकर उत्तर पूर्वी और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के) जीएसटी के तहत पंजीकरण करना होगा। यह अभी भी छोटे किराना दुकानों को टैक्स के दायरे से बाहर रखता है जैसा कि पहले विभिन्न राज्यों के तहत वैट की टर्नओवर सीमा कम थी।
इसमें कंपोजिशन स्कीम का प्रावधान भी है। 75 लाख या 50 लाख (विशेष स्थिति) से कम के टर्नओवर वाले किराना स्टोर्स कंपोजिशन स्कीम को चुन सकते हैं और इनपुट टैक्स क्रेडिट के बिना कुल टर्नओवर के 1 फीसदी टैक्स का भुगतान कर सकते हैं। हालांकि, वे अन्य राज्यों में विभिन्न ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के माध्यम से बिक्री नहीं कर सकते हैं और उन्हें रिकॉर्ड बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होगी। वे किराना स्टोर जो ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के माध्यम से बिक्री कर रहे हैं उन्हें रिकॉर्ड बनाए रखना होगा और यह 2 फीसदी टीसीएस के अधीन है, जिसे टैक्स लायबिलिटी (कर देयता) के साथ एडजस्ट किया जा सकता है।
इनवॉइसिंग और टेक्नोलॉजी से संबंधित जीएसटी के बारे में अन्य मिथकों को रेवेन्यू सेक्रेटरी (राजस्व सचिव) द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि क्या इनवॉइस को डिजिटल रूप से बनाना होगा? क्या हर 15 दिन में टैक्स दाखिल करना होगा? रेवेन्यू सेक्रेटरी ने इन सभी बातों को स्पष्ट कर दिया है। तो, किराना स्टोर्स मैन्युअल रूप से इनवॉइस बना सकते हैं और उन्हें कंप्यूटर तथा इंटरनेट की कोई जरूरत नहीं है। उन्हें सिर्फ अपना मासिक जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के लिए इंटरनेट की जरूरत होगी। हालांकि वे किराना स्टोर्स जो कि खुदरा कारोबार (B2C) में हैं, उन्हें 2.5 लाख से ज्यादा की इंटर-स्टेट बिक्री (B2B) के विशेष उल्लेख के साथ बिक्री का सारांश (समरी ऑफ़ सेल्स) प्रस्तुत करना होगा।
इस प्रकार, जीएसटी से हर जगह मौजूद किराना स्टोर्स का यह बड़ा उद्योग न केवल संगठित बनकर उभरेगा बल्कि यह अपने लेनदेन में भी पारदर्शी होगा। छोटे समय के लिए खुलने वाले किराना स्टोर पर जीएसटी का कोई प्रभाव नहीं होगा क्योंकि उन्हें जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। लेकिन जो लोग टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं, वे इससे अब और नहीं बच पाएंगे। हालांकि वे इनपुट टैक्स क्रेडिट से लाभान्वित ही होंगे। जीएसटी लागू करने का यह शुरुआती चरण थोड़ा जटिल व कठिनाई भरा दिख सकता है, लेकिन अंततः यह इस उद्योग के लिए बड़े पैमाने पर लाभकारी सिद्ध होगा।
साभार – शैलेश अग्रवाल, फ़ाउंडर और डायरेक्टर, जीएसटीएसएआर