सरकारी सूत्रों के अनुसार, “हम एकल बोली लगाने वाले की स्थिति में हैं और इसका मतलब ये नहीं है कि कोई बोली लगाने वाला अपनी शर्तें लगा सकता है… इसलिए विनिवेश प्रक्रिया अभी के लिए रुकी हुई है।”
दूसरी सबसे बड़ी सरकारी रिफाइनरी कंपनी के निजीकरण के लिए अधिक खरीदार नहीं मिल सके हैं। इसके पीछे का कारण अस्थिर वैश्विक तेल मूल्य परिदृश्य और फिर घरेलू ईंधन मूल्य निर्धारण में स्पष्टता की कमी को बताया जा रहा हैै। सार्वजनिक क्षेत्र के ईंधन खुदरा विक्रेता पेट्रोल और डीजल को लागत से कम कीमतों पर बेचते हैं जिससे प्राइवेट सेक्टर के खुदरा विक्रेताओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
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किन निवेशकों ने अपने नाम लिए वापस?अनिल अग्रवाल के वेदांत समूह और यूएस वेंचर फंड अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट इंक और आई स्क्वेयर्ड कैपिटल एडवाइजर्स ने बीपीसीएल में सरकार की 53 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। बाद में दोनों वैश्विक निवेशकों ने अपनी बोलियाँ वापस ले लीं।
बता दें कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी BPCL का मौजूदा बाजार पूंजीकरण करीब 848.27 अरब रुपये यानि कि 11.4 अरब डॉलर है।