scriptनोटबंदी के बाद 500 रु का नोट आने में क्यों हुई देरी? पढ़ें यह खबर | Why the delay of 500 rupee note after the demonitization? Read this news | Patrika News

नोटबंदी के बाद 500 रु का नोट आने में क्यों हुई देरी? पढ़ें यह खबर

locationनई दिल्लीPublished: Aug 13, 2017 08:49:00 pm

Submitted by:

Rahul Chauhan

जब नोटबंदी की घोषणा की गई, उस समय आरबीआई के पास 2,000 रुपये के नए नोटों का 4.95 लाख करोड़ का स्टॉक था, पर उसके पास नए 500 रुपये का एक भी नोट नहीं था।

500 rupee new note

नोटबंदी के बाद 500 रु का नोट आने में देरी हुई थी

नई दिल्ली: पिछले साल 8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अचानक की गई नोटबंदी की घोषणा के दो दिन बाद 2,000 रुपये के नए नोट बाजार में आने शुरू हो गए थे, लेकिन 500 रुपये के नोट को आने में लंबा वक्त लग गया था। इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोगों को कई दिनों तक भारी परेशानी झेलनी पड़ी। इस बात का खुलासा आरबीआई के एक अधिकारी ने किया है। नोटबंदी की घोषणा से कई महीनों तक बैंकों के बाहर लंबी लंबी-कतारें देखने को मिली थीं। गौरतलब है आरबीआई ने बैंकों में 500 और 1000 के पुराने नोट जमा करने के लिए 31 दिसम्बर तक का समह दिया था।
500 के नोट छापने का निर्णय देर से लिया गया
जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी, उस समय आरबीआई के पास 2,000 रुपये के नए नोटों का 4.95 लाख करोड़ का स्टॉक था, पर उसके पास नए 500 रुपये का एक भी नोट नहीं था। इस नोट के बारे में बाद में सोचा गया। देश में नोट छापने के 4 प्रिंटिंग प्रेस हैं। इनमें आरबीआई के 2 प्रेस हैं, जो मैसूर (कर्नाटक) और सालबोनी (पश्चिम बंगाल) में हैं। इसके अलावा भारतीय प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लि. के 2 प्रिंटिंग प्रेस हैं, जो नासिक (महाराष्ट्र) और देवास (मध्य प्रदेश) में हैं।
बिना ऑर्डर के शुरू हो गई थी छपाई
SPMCIL सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जिसकी स्थापना साल 2006 में नोट छापने, सिक्कों की ढलाई करने तथा गैर-न्यायिक स्टैंप के मुद्रण के लिए की गई थी। यह कंपनी हमेशा आरबीआई द्वारा दिए गए ऑर्डर के मुताबिक नोटों की छपाई करती है। लेकिन इस बार SPMCIL ने आरबीआई के आधिकारिक ऑर्डर के बिना ही नोटों की छपाई शुरू कर दी। 500 रुपये के नोट की डिजाइन नोटबंदी से पहले केवल आरबीआई के मैसूर प्रेस के पास थी। SPMCIL के देवास प्रेस में आरबीआई के आधिकारिक ऑर्डर के बिना नवंबर के दूसरे हफ्ते में और नासिक प्रेस में नवंबर के चौथे सप्ताह में इसकी छपाई शुरू कर दी गई। हालांकि, इसकी छपाई आरबीआई के प्रेस में पहले से की जा रही थी, लेकिन वह नोटबंदी के कारण बढ़ी मांग को पूरा नहीं कर पा रहा था।
30 दिन लगते हैं बाहर से कागज मंगाने में
किसी नोट को छापने में सामान्यत: 40 दिन लगते हैं, जिसमें नई डिजाइन के हिसाब से कागज की खरीद में लगने वाला समय भी शामिल है। नोटबंदी के कारण इसमें तेजी लाने के लिए इस अवधि को घटाकर 22 दिन कर दिया गया। नोट की छपाई में लगने वाले कागज और स्याही की खरीद दूसरे देशों से की जाती है, जिसके आने में 30 दिन लगते हैं। लेकिन नोटबंदी के बाद हुई परेशानी को देखते हुए इसे विमान से 2 दिन में लाया जा रहा था। आरबीआई से उसके दूरदराज के चेस्ट में नोट ले जाने में 10 से 11 दिन लगते हैं, जिसे हेलिकॉप्टर और जहाज से 1-1.5 दिन में पहुंचाया गया।
पहली बार देशी कागज से छापे गए नोट
प्रिंटिंग प्रेस में नोट छापने के लिए जिस कागज का इस्तेमाल होता है, वह उच्च संवेदी सिक्यॉरिटी थ्रेड से लैस होता है और 16 दिन बाद छप कर बाहर निकलता है। लेकिन पहली बार देश में बने हुए कागज का इस्तेमाल 500 रुपये के नोट छापने में किया गया। यह कागज होशंगाबाद और मैसूर के पेपर मिल में विकसित किया गया। लेकिन उनकी क्षमता 12,000 मीट्रिक टन सालाना है, जो पर्याप्त नहीं है और अभी भी इसके आयात की जरूरत पड़ती है।
सेवानिवृत कर्मियों की भी लेनी पड़ी थी मदद
नासिक और देवास प्रेस की नोट छापने की संयुक्त क्षमता 7.2 अरब नोट सालाना की है। जबकि आरबीआई के मैसूर और सालबोनी प्रेस की संयुक्त क्षमता 16 अरब नोट सालाना छापने की है। नोटबंदी के बाद इन प्रिंटिंग प्रेस में काम करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने 200 लोग भेजे थे और इन प्रेसों के हाल में सेवानिवृत्त हुए 100 कर्मियों की भी मदद ली गई।

ट्रेंडिंग वीडियो