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इस छोटी सी बात की वजह से टर्बो चार्ज्ड इंजन और नार्मल इंजन में होता है अंतर

locationनई दिल्लीPublished: Oct 13, 2018 02:51:08 pm

Submitted by:

Pragati Bajpai

जहां कुछ साल पहले वाहनों में सामान्य इंजन का प्रयोग किया जाता था लेकिन अब टर्बो चार्ज्ड इंजन का दौर आ चुका है

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इस छोटी सी बात की वजह से टर्बो चार्ज्ड इंजन और नार्मल इंजन में होता है अंतर

नई दिल्ली: आॅटोमोबाइल सेक्टर एक तेजी से बढ़ने वाला बिजनेस है। हर दिन न सिर्फ नई -नई कारें और बाइक मार्केट में लॉन्च होती हैं बल्कि टेक्नोलॉजी के लिहाज से भी काफी बड़े- बड़े बदलाव देखे गए हैं।पिछले 15 सालों में आॅटोमोबाइल की दुनिया में जो बदलाव देखने को मिले है उनकी किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी। जहां कुछ साल पहले वाहनों में सामान्य इंजन का प्रयोग किया जाता था लेकिन अब टर्बो चार्ज्ड इंजन का दौर आ चुका है और दुनिया भर के कई वाहन निर्माता धडल्ले से इस इंजन का प्रयोग कर रहे हैं।

कंपटीशन के इस दौर में टाइम की मारामारी और बेहतर परफारमेंस के प्रेसर ने कार निर्माताओं को भी नये प्रयोग और तकनीकी के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। जिसके बाद टर्बो चार्ज्ड इंजन का प्रोयग शुरू हुआ। इसका प्रयोग पहले इक्का दुक्का वाहन निर्माताओं ने किया लेकिन देखते ही देखते ये इंजन इतना मशहूर हुआ कि आज तकरीबन हर वाहन निर्माता इस टर्बो चार्ज्ड इंजन का प्रयोग कर रहा है। क्या आपने कभी सोचा है कि एक सामान्य इंजन और टर्बो चार्ज्ड इंजन में आखिर क्या अंतर होता है। चलिए हम आपको बताते हैं।

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एक नार्मल इंजन और टर्बो चार्ज्ड इंजन दोनों में तीन ऐसे फैक्टर होते हैं जो एक समान होते हैं। चाहे वो सुपर चार्ज्ड इंजन हो, टर्बो चार्ज्ड इंजन हो या फिर सामान्य इंजन ये तीनो ही गैसोलिन से चलते हैं और इन इंजनों को चलने के लिए तीन मुख्य बातें जरूरी हैं। इनमें स्पार्क, फ्यूल और हवा की मुख्य भूमिका होती है और इन्हीं तीन कम्पोनेंट की मदद से ये इंजन चलते हैं।

टर्बोचार्जिंग तकनीक में कुछ भी नया नहीं है वास्तव में, यह तकनीक सदियों से हमारे बीच में है। लेकिन, हाल के दिनों में ये तेजी से विकसित हुआ है और इसका प्रयोग भी बढ़ा है। जब आप एक इंजन को टर्बो चार्ज्ड करते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप इंजन को अल्टर कर रहे हैं बल्कि ये इंजन के वेट को बढ़ाये बिना ही उसके आउट पुट पॉवर को बढ़ाता है।

दरअसल टर्बो चार्ज्ड एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से इंजन के भीतर हवा के दबाव को और भी बढ़ाता है। इंजन के चेंबर में हवा को और भी ज्यादा दबाने का मतलब ये होता है कि चेंबर में फ्यूल के लिए और भी ज्यादा जगह मिलती है और ज्यादा फ्यूल का सीधा मतलब होता है कि और भी ज्यादा उर्जा का उत्पन्न होना। जिससे इंजन का परफार्मेंश सीधे तौर पर बढ़ जाता है। एक सामान्य इंजन की तुलना में ये कहीं ज्यादा आउटपुट प्रदान करता है।

बात करें सामान्य इंजन की तो यह एक इंटरनल कंबशन पर बेस्ड होता है। जिसमें हवा का फ्लो पूरी तरह से वायुमंडलीय दबाव पर निर्भर करता है, जो किटर्बो चार्ज्ड इंजन के बिलकुल विपरीत है। हालांकि एक टर्बो चार्ज्ड इंजन वजन के अनुपात अनुसार अधिक शक्ति प्रदान करने में सक्षम है, फिर भी यह कुछ टर्बो अंतराल के साथ उत्पन्न होता है। जिसका अर्थ यह है कि इसे पहियों तक पहुंचने में थोड़ी देरी होती है। वहीं सामान्य इंजन में ऐसी समस्या नहीं आती है लेकिन एक सामान्य इंजन टर्बो चार्ज्ड इंजन की तुलना में ज्यादा पॉवर जेनरेट करने में सक्षम नहीं होता है।

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