ड्राइविंग करते हुए
टेक्सटिंग खतरनाक है, ऎसे ही बंधनों के चलते सेल्फ-ड्राइविंग कार एक बड़ा आकर्षण
लगती है जहां आप खुद चलने वाली गाड़ी के हाथों में कंट्रोल छोड़ कर न केवल पढ़-लिख
सकते हैं बल्कि खा सकते हैं या झपकी तक ले सकते हैं। यह सपना हकीकत बनने के साथ ही
दोनों तरीकों से रोड ट्रांसपोर्ट को पूरी तरह बदल सकता है – कैसे हम इसका इस्तेमाल
करते हैं और कौन इसे कंट्रोल करेगा, तकनीक या कार निर्माता!
क्या होगा
भविष्य का हालजनरल मोटर्स ने 60 साल पहले “मोटोरोमा ट्रेड शो” में “जीएम
मोटोरोमा एक्जीबिट 1956” नामक एक फिल्म में जेट युग की कल्पना करते हुए 1976 में
बनने वाली गाडियों और सड़कों की कल्पना की थी। अब एंड्रॉयड कार वैसे ही कुछ वादे
पूरा कर रही हैं। घंटों लंबी ड्राइविंग से आराम पाने का वादा, एक्सीडेंट्स के कम
होने का भरोसा। प्रायोगिक कदम उठाने वाले गूगल का दावा है कि दस लाख किमी. चलने के
बाद भी उनकी कार से बहुत मामूली एक्सीडेंट हुए हैं जो अमेरिका में होने वाले सालाना
एक्सीडेंट से बहुत कम है और इनकी भी वजह इंसान थे, रोबोट नहीं। 2013 में कोलंबिया
यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टीटयूट की एक स्टडी में अनुमान लगाया गया था कि ये तमाम
“ऑटो-ऑटोज” आपस में एक “Internet of Car” बना डालें तो गंतव्य तक पहुंचने की लागत
में चार-पांच गुनी कमी आ जाएगी। ट्रैफिक जाम और प्रदूषण से भी राहत मिलेगी।
मात्र 3 हजार रूपए में घर ले आएं BMW 3 Series जैसी कारेंसेल्फ ड्राइविंग पहले से हीइसमें कोई दो-राय नहीं कि सेल्फ-ड्राइविंग
भविष्य में मोटरिंग का परिदृश्य पूरी तरह बदल सकती है, देखना यह होगा कि इस बदलाव
में टेक्नोलॉजी हावी होती है या कारमेकर्स कंपनियां! हाल में गूगल ने
सेल्फ-ड्राइविंग कार के अपने लेटेस्ट प्रोटोटाइप की टेस्टिंग कैलिफोर्निया के
माउंटेन व्यू में शुरू की, हालांकि सुरक्षा के लिहाज से कार में सेफ्टी-ड्राइवर भी
मौजूद था। यह प्रोटोटाइप गूगल की लैक्सस कार के बेड़े को जॉइन करेगा जो कि फिलहाल
माउंटेन व्यू की पब्लिक स्ट्रीट में ऎसे ही सेल्फ-ड्राइविंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल
कर रही हैं। गूगल की सेल्फ ड्राइविंग लेक्सस आरएक्स450एच स्पोटर्स यूटिलिटी
व्हीकल्स पर पिछले कुछ सालों से काम चल रहा है। ट्रायल के दौरान कार की स्पीड 25
किमी प्रति घंटा रखी गई थी। हालांकि इस प्रोटोटाइप को स्टीयरिंग व्हील और पैडल के
बिना चलने के लिए तैयार किया गया है लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज से रिमूवेबल
स्टीयरिंग व्हील, एक्सीलेटर और ब्रेक पैडल के साथ कार में एक सेफ्टी-ड्राइवर मौजूद
था। इस महीने की शुरूआत में गूगल ने सेल्फ-ड्राइविंग कारों के लिए खासतौर पर एक
वेबसाइट भी लांच की थी। गूगल ने अपने सेल्फ ड्राइविंग कार प्रोजेक्ट की मंथली
रिपोर्ट में बताया कि नौ प्रोटोटाइप्स और 23 लेक्सस आरएक्स450एच के परीक्षण के
दौरान 2009 से अब तक यह गाडियां कुल 16 लाख किमी. चल चुकी हैं और इनसे 12 एक्सीडेंट
हुए, जिनमें बहुत मामूली नुकसान हुआ है और अधिकांश दुर्घटनाएं दूसरी कारों के
ड्राइवरों की गलतियों का परिणाम थी। बहरहाल, हाल में कैलिफोर्निया की सड़क पर गूगल
और डेल्फी की दो सेल्फ-ड्राइविंग कारों ने एक लेन में आकर टक्कर का अंदेशा भी बना
दिया था।
फेसलिफ्टेड महिन्द्रा एक्सयूवी500 में है बहुत कुछ खासगूगल उतारेगी पहली सेल्फ ड्राइविंग कारसेल्फ-ड्राइविंग
पहले से ही क्रूज कंट्रोल, एंटी-स्किड ब्रेकिंग, सेटेलाइट नेविगेशन, ऑटोमेटिक
ट्रांसमिशन। अब कारों में बहुत कुछ ऎसा जो पहले इंसान करते थे, कंम्प्यूटर संभालने
लगे हैं, आधी दूरी तय हो चुकी है अब लक्ष्य “फुल सेल्फ ड्राइविंग ऑटोमेशन” पाने का
है। ऑटोपायलट मोड पर जा सकने वाले “रूमबा” वैक्यूम क्लीनिंग स्वचालित रोबोट या
“रोबोमोव” लॉन-मोअर की तरह अब कारों की बारी है कि वे खुद चलें। गूगल ने पहले ही
घोषणा कर दी थी कि 2015 में वह दुनिया की पहली सेल्फ-ड्राइविंग कार को सिलिकन वैली
की सड़कों पर उतार देगा।
धीरे-धीरे आ रहा है बदलावक्रेडिट सुइस के
विश्लेषक उवे न्यूमन के अनुसार हम में से ज्यादातर के लिए ह्यूमन ड्राइविंग से
एंड्रायड ड्राइविंग तक जाना क्रमिक होगा। ऎसा ही एक कदम सेल्फ-पार्किग है। एक दशक
पहले तक ये सोचना भी मुश्किल था लेकिन अब दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों
में शुमार फोर्ड फोकस में यह हो रहा है। अगले 3-5 साल में हम पूरी तरह
सेल्फ-ड्राइविंग को भी होते देख सकते हैं। सबसे पहले शायद यह चुनिंदा कुछ हिस्सों
के लिए उपलब्ध होगी, जहां एकतरफा यातायात और बहुत कम अवरोधक होंगे।
यह भी देख्खें- निसान टेरेनो का ग्रूव एडिषन लॉन्च, वीडियो में देखिए खूबियांगूगल
ही नहीं और भीइस खेल में गूगल ही इकलौता खिलाड़ी नहीं है। निकटवर्ती उत्तरी
कैलिफोर्निया में, कथित तौर पर “एप्पल ” भी सड़कों पर परीक्षण कर रही है।
सोशियो-टैक्सी ऑपरेटर “उबर” भी अमेरिका के पिट्सबर्ग में ऎसे प्रोटोटाइप पर जुटी
है। कार्नेगी मेलॉन विश्ववद्यालय के रोबोटिक सेंटर में भी इस पर काम हो रहा है।
सर्किट डिजाइनर कंपनी “एनवीडिया” भीवीडियो गेम की कारों से असल जिंदगी में इन्हें
लाने की छलांग लगाने की कोशिश में है। “मोबाइलआई” जैसी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स के रूप
में ऎसी कारों के रास्ते में आने वाली बाधाओं और संभावित दुर्घटनाओं को भांपने की
इलेक्ट्रॉनिक्स बनाने में जुटा है और आपूर्तिकर्ताओं के रूप में पारंपरिक कंपनियों
के साथ साझेदारी कर रहा है। डेमलर, जनरल मोटर्स, टोयोटा और अन्य मोटर दिग्गज भी
सेल्फ-ड्राइविंग के इस मैदान में शामिल हो रहे हैं। वर्ष 2030-35 तक हो सकता है कि
ड्राइवर को एक पैसेंजर की तरह गाड़ी में सवार होकर सिर्फ अपने गंतव्य का पता इनपुट
करने जितना काम रहे।
सबसे बड़ा चैलेंज: इंसानी व्यवहार
फिलहाल स्वायत्त
संचालित कारों की राह में बाधा क्या है? पहली तो यह कि वे कानूनी नहीं हंै। आलोचकों
का कहना है कि अगर आपका स्मार्टफोन ठीक से काम नहीं करता तो आपके पास उसे बदलने का
ऑप्शन है लेकिन अगर एक सेल्फ-ड्राइविंग कार ठीक से काम नहीं करती तो यह कई लोगों की
जान ले सकती है। क्रेडिट सुइस एनालिस्ट रेटो हैज के अनुसार एक खराब एक्सीडेंट इस
इंडस्ट्री को कई साल पीछे भेज सकता है। दूसरी बाधा है इनकी कीमत। जाहिर है, जब तक
लोग इंटरचेंज करते हुए एक-दूसरे की कार यूज नहीं करते या ऎसा ढांचा खड़ा नहीं हो
जाता, ये कारें बहुत महंगी पड़ेंगी। अगर ऎसा भी होता है तो कम कारें चाहिए होगी
क्योंकि लोग कार-सर्विस पर पैसा खर्च करेंगे, कार पर नहीं। कारों की कम बिक्री
कंज्यूमर के लिए तो अच्छी होगी लेकिन कार-निर्माताओं के लिए नहीं। इसके अलावा देखना
यह भी होगा कि “कार आइडेंटी” का खो जाना भी लोग बर्दाश्त कर पाएंगे या नहीं, मसलन
अपनी पर्सनल फ्रीडम के लिए शेवरलेट या लेवी की बजाय गूगल की गाड़ी “ड्राइव” करना,
जहां खुद को करना कुछ नहीं हो।
कौन हावी
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि
आने वाले समय में ऑटो इंडस्ट्री पर तकनीकी कंपनियां राज करने लगेंगी वहीं कुछ का
मानना है कि बदलाव के इस दौर में कार कंपनियां अपनी भूमिका बदल कर आगे भी आ सकती
हंै। कौन जानता था कि एपल एक म्यूजिक कंपनी भी बन जाएगी? क्या ऑटोमेकिंग का बिजनेस
उन बिजनिस में शामिल हो जाएगा जिन्हें टेक्नोलॉजी के मार्केट ने चोट पहुंचाई हैं,
जैसा वर्गीकृत विज्ञापनों (“ईबे”, “क्रेग्सलिस्ट”), लंबी दूरी की कॉल (स्काइप),
रिकॉर्ड स्टोरी (आई टयून), ट्रेवल एजेंट (ऑर्बिट्ज) और बुक स्टोर के साथ “अमेजन”,
“फ्लिपकार्ट” आदि ने किया! वहीं दूसरी तरफ यह भी तथ्य है कि पारंपरिक
कार-निर्माताओं की कुछ क्षेत्रों में धाक कभी कम नहीं हो सकती। बड़े पैमाने पर
उत्पादन और वितरण के अलावा आपूर्ति श्ृंखला पर उनका दबदबा रहेगा और सेल्फ-ड्राइविंग
युग की तरफ बढ़ते हुए कुछ कार-निर्माता अपनी कोशिश भी बढ़ा रहे हैं। जैसे फॉक्सबर्ग
मुख्यालय में फॉक्सवैगन ने खास इसी काम के लिए 1200 कर्मचारी समर्पित किए हुए हैं।
जनवरी माह में फॉक्सवैगन ने नेक्स्ट जेन इन्फोटेनमेंट सिस्टम के तौर पर जेस्चर
कंट्रोल सिस्टम गोल्फ आर टच कॉन्सेप्ट को लाते हुए “स्मार्टफोन ऑन व्हील्स” अवधारणा
की दिशा में कदम बढ़ाया। कौन जानता है कि इस बार कार-निर्माता ही आगे रहे और तकनीक
उनके पीछे!
क्रेडिट सुइस के विश्लेषक उवे न्यूमन के अनुसार, “टेक्नोलॉजी के
लिए स्मार्टफोन की तरह ही स्मार्ट कार हैं, जिस पर उन्हें अपने नए-नए ऑफर्स के बूते
विजय हासिल करनी है।”