सिमरिया में भाजपा विरोधी वोट को बटोरने में कोई एक दल कामयाब नहीं रहा। लिहाजा इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के जीत की जमीन तैयार हो गई। सिमरिया का रण जीतने के लिए भाजपा के अलावा आजसू, झाविमो तथा कांग्रेस पार्टी ने पूरी ताकत झोंकी थी। भाजपा के प्रत्याशी को तो भाजपा समर्थक मतदाताओं का वोट प्राप्त हो गया। लेकिन आजसू, झाविमो तथा कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी भाजपा विरोधी वोट को अपने खेमे में पूरी तरह लाने में कामयाब नहीं हो सके। भाजपा विरोधी वोट इस विधानसभा क्षेत्र में आजसू, झाविमो तथा कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच बट गया। खासकर अल्पसंख्यक मतों में भी जमकर बिखराव हुआ।
जिसका लाभ सीधे-सीधे भाजपा को प्राप्त हुआ। दरअसल सिमरिया विधानसभा क्षेत्र में भाजपा विरोधी मतदाता यह आकलन लगाने में कामयाब नहीं हो सके कि इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को टक्कर किस दल का प्रत्याशी दे रहा है। विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग प्रखंडों में भाजपा के साथ मुकाबले में अलग-अलग दल के प्रत्याशी नजर आए। लावालौंग तथा गिद्धौर प्रखंड में भाजपा की टक्कर जहां झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी से हुई। वही सिमरिया, टंडवा तथा पत्थलगड्डा प्रखंड में भाजपा से आजसू पार्टी के प्रत्याशी का मुकाबला हुआ।
इसी तरह विधानसभा क्षेत्र के इटखोरी एवं मयूरहंड प्रखंड में भाजपा के साथ कांग्रेस पार्टी टक्कर हुई। विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग प्रखंडों में भाजपा के साथ मुकाबले का अलग-अलग ट्रेंड ने भाजपा विरोधी मतों को एकजुट होने ही नहीं दिया। हालांकि भाजपा विरोधी मतों को एकजुट करने के लिए सिमरिया में आजसू, झारखंड विकास मोर्चा तथा कांग्रेस के प्रत्याशी ने खूब प्रयास किया। खासकर आजसू पार्टी के द्वारा इस रणनीति पर भरपूर मेहनत की गई। जिसमें आजसू पार्टी के प्रत्याशी को कुछ हद तक कामयाबी भी मिली।
जिसके बदौलत आजसू पार्टी सिमरिया विधानसभा क्षेत्र में दो नंबर पर आ गई। लेकिन सिमरिया में नंबर वन बनने के लिए आजसू को भाजपा विरोधी मतों का पूरा साथ नहीं मिल पाया। क्षेत्र के चुनाव विश्लेषक बताते हैं कि सिमरिया में भाजपा का मुकाबला अगर सीधे किसी एक दल से होता तो भाजपा का यहां से चुनाव जीतना काफी मुश्किल भरा होता। क्योंकि ऐसी स्थिति में भाजपा विरोधी मतों का बिखराव रुक जाता। भाजपा के विरोध का मत किसी एक दल को ही प्राप्त होता। जो भाजपा को मिले मतों से ज्यादा होता।