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जब नामवर सिंह ने लड़ा था लोकसभा चुनाव, आया परिणाम तो लिया था यह फैसला

locationचंदौलीPublished: Feb 20, 2019 01:27:47 pm

Submitted by:

sarveshwari Mishra

इसलिए छोड़ दी थी बीएचयू की नौकरी

Namvar Singh death

Namvar Singh death

चंदौली. हिंदी जगत के विख्यात आलोचक और साहित्यकार नामलर सिंह ने मंगलवार को रात 11.52 पर दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली। नामवर सिंह 93 वर्ष के थे। उन्होंने आलोचना और साक्षात्कार विधा को नई ऊंचाई दी है। उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से भी नवाजा गया है। नामवर सिंह ने साहित्य में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से एमए और पीएचडी की थी। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी था। वे कई साल तक एक प्रोफेसर के तौर पर सेवाएं देते रहे। उनकी छायावाद, नामवर सिंह और समीक्षा, आलोचना और विचारधारा जैसी किताबें चर्चित हैं। 1959 में चकिया चंदौली से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारने बाद बीएचयू से अप्रिय परिस्थितियों में नौकरी छोड़नी पड़ी और उसके बाद सागर विश्वविद्यालय में कुछ दिन नौकरी की।

कौन है नामवर सिंह
नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1927 को जीयनपुर (अब चंदौली) वाराणसी में हुआ था। नामवर सिंह हिंदी के प्रतिष्ठित आलोचक हैं। हिंदी में आलोचना विधा को नई पहचान देने वाले नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में एमए व पीएचडी करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाया. इसके बाद वे दिल्ली आ गए थे. यहां उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भारतीय भाषा केंद्री की स्थापना की और हिंदी साहित्य को और ऊंचाई पर ले गए। नामवर सिंह ने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की और 1941 में उनकी पहली कविता ‘क्षत्रियमित्र’ पत्रिका में छपी।

93 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
हिंदी के विख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह (Namvar Singh) का निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली. नामवर सिंह 93 वर्ष के थे। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक नामवर सिंह ने मंगलवार की रात 11.51 बजे आखिरी सांस ली। नामवर सिंह पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। जनवरी में वे अचानक अपने रूम में गिर गए थे। इसके बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले जाया गया था। यहीं उनका इलाज चल रहा था।
चंदौली से लड़े थे लोकसभा चुनाव
1951 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए करने के दो साल बाद वहीं हिंदी के व्याख्याता नियुक्त हुए। 1959 में चकिया चंदौली से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारने बाद बीएचयू से अप्रिय परिस्थितियों में नौकरी छोड़नी पड़ी और उसके बाद सागर विश्वविद्यालय में कुछ दिन नौकरी की। 1960 में बनारस लौट आए। फिर 1965 में जनयुग साप्ताहिक के संपादन का जिम्मा मिला। 1971 में नामवर सिंह को कविता के नए प्रतिमान पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1974 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त हुए और वहीं से 1987 में सेवा-मुक्त हुए। नामवर सिंह एक प्रखर वक्ता भी थे। बकलम खुद, हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योगदान, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियांष छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, नई कहानी, कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज उनकी प्रमुख कृतियां हैं।

सम्मान
साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1971 (कविता के नये प्रतिमान)
शलाका सम्मान -हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से
साहित्य भूषण सम्मान- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से
शब्दसाधक शिखर सम्मान – 2010 (‘पाखी’ तथा इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी की ओर से)
महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान – 21 दिसम्बर 2010
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