कृषि अर्थशास्त्री आरएस घुमान और राजीव शर्मा ने भूमिगत जल के दोहन पर यह अध्ययन किया है। यह अध्ययन भी हाल में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन ’भारत में बढती जल असुरक्षा और उन्नत कृषि वाले राज्य से कुछ सबक’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के अनुसार पंजाब के चार जिलों में तो रिचार्ज का दो गुना तक भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है। इन चार जिलों में संगरूर, जालंधर, कपूरथला व मोगा शामिल हैं। पंजाब के मध्य मैदानी क्षेत्र में भूमिगत जल का अधिक दोहन किया जाता है। इस क्षेत्र में खरीफ में धान की फसल मुख्य होती है। धान अधिक पानी वाली फसल है। अन्य जिलों जैसे बरनाला में रिचार्ज का 94 फीसदी और इसी तरह फतेहगढ साहिब में 91फीसदी,पटियाला में 89फीसदी,लुधियाना में 62फीसदी और फरीदकोट में रिचार्ज के 60 फीसदी जल का दोहन किया जा रहा है।
पंजाब में सिर्फ दो ही जिले ऐसे हैं जहां रिचार्ज से कम पानी का दोहन किया जा रहा है। इनमें पठानकोट और होशियारपुर शामिल हैं। प्रदेश में करीब अस्सी फीसदी पानी की खपत धान की खेती में होती है। यह धान केन्द्रीय अनाज भण्डार में जाता है। इसके अलावा औद्योगिक एवं घरेलू उपयोग में भी पानी का खर्च अधिक है। इस संकट की स्थिति में भी पंजाब में जल नीति नही है। अन्य राज्यों ने जल नीति बनाई है या फिर बनाई जा रही है। कृषि अर्थशास्त्रियों की राय है कि पंजाब को रेगिस्तान में बदलने से रोकने के लिए कम पानी वाली फसलें लाने की गति बढानी होगी और जल नीति लागू कर पानी के उपयोग पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। हाल में ही प्रदेश के बिजली मंत्री ने पिछली अकाली-भाजपा सरकार के दौरान तय डेढ लाख नए ट्यूबवैलों को बिजली के कनेक्शन देने की योजना को रोकने का ऐलान किया था। पंजाब में 1970-71 के दौरान 1.92 लाख ट्यूबवैल थे जो कि 2015-16 के दौरान बढकर 14.14 लाख हो गए। नतीजा यह रहा के वर्ष 2016 तक विभिन्न जितों में भूमिगत जल स्तर 6 से 22मीटर तक नीचे चला गया।