चेन्नई

536 लोगों में बांटी 2.50 करोड़ रुपए की सहायता सामग्री

यहां मण्डी खेल मैदान में सोमवार को सूचना व प्रसार विभाग की ओर से 201वीं राजकीय प्रदर्शनी आयोजित की गई जिसका बतौर मुख्य अतिथि विभागीय….

चेन्नईJan 04, 2019 / 11:42 pm

मुकेश शर्मा

536 people distributed relief material worth Rs 2.50 crore

वेलूर।यहां मण्डी खेल मैदान में सोमवार को सूचना व प्रसार विभाग की ओर से 201वीं राजकीय प्रदर्शनी आयोजित की गई जिसका बतौर मुख्य अतिथि विभागीय मंत्री कडम्बूर राजू ने उद्घाटन किया। उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करतेे हुए उन्होंने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. जे.जयललिता के कार्यकाल के दौरान उन्होंने जनता को राज्य में चल रहे जनकल्याणकारी योजनाओं के संबध में जानकारी देने के उद्देश्य से हरेक जिलों में प्रत्येक वर्ष राजकीय प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता रहा है। इस प्रदर्शनी में विभिन्न विभागों की ओर से स्टाल लगाई जाती है।

इन स्टालों में संबंधित अधिकारी आने वाले लोगों को योजनाओं के बारे में विस्तार से बताते हैं ताकि आमजन इन योजनाओं का लाभ ले सकें। इसके अलावा प्रदर्शनी में आने वाले लोगों व बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला, खाद्य स्टाल, घरेलू सामग्री आदि की स्टालें लगाई जाती हैं।

इस वर्ष प्रदर्शनी में 27 विभागों की ओर से स्टाल लगाई गई है। उन्होंने 536 जरूरतमंदों में 2.50 करोड़ रुपए की सहायता सामग्री का वितरण किया। इस अवसर पर कर व वाािज्य मंत्री के.सी.वीरमणि, सूचना व प्रसार विभाग के निदेशक शंकर, कलक्टर रामण, पुलिस अधीक्षक परवेश कुमार, विधायक रवि व लोकनादन समेत अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।

रिश्तों की डोर से बनता है परिवार

मदुरान्तकम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि सामान्यत: रिश्ते का तात्पर्य संबंधों से होता है। संबंधों के आधार प्राय: भावनात्मक होते हैं। रिश्तों की डोर से परिवार बनता है। जब कुछ परिवार जुड़ते हैं तो समाज बनता है। कुछ सामाजिक समुदाय आपस में जुड़ते हैं तो जातियां बनती हैं। प्राचीन भारतीय कल्पना में पूरे विश्व को एक कुटुम्ब माना गया है। वसुधैव कुटुम्बकम का सूत्र इसी भावना का दर्पण है।

उन्होंने कहा आज रिश्तों की परिभाषा सिमटती जा रही है। कुछ स्वजनों, मित्रों तक आकर रिश्तों की सीमा समाप्त होने लगी है। ऐसे में यह देखने की जरूरत है कि हम रिश्ते को कैसे परिभाषित करते हैं। पारिवारिक जीवन तप और त्याग की बुनियाद पर खड़ा होता है। गृहस्थी के निर्वाह का प्रयत्न किसी तपस्या से कम नहीं होता।

सही मायने में परिवार को साथ लेकर चलने और साथ रहने से ही समाज और राष्ट्र को मजबूती मिल सकती है। उपाध्याय ने कहा आजकल घरों में बुजुर्गों के प्रति एक उदासीनता का भाव और दूरी बढ रही है जबकि हमारे यहां बुजुर्ग परिवार का आधार रहे हैं। यह वास्तव में तेजी से बढ रही संवेदन शून्यता का ही परिणाम है कि घरों में बुजुर्गों की ऐसी स्थिति आ गई है। हमारे यहां तेजी से वृद्धाश्रमों की संख्या बढ रही है। हमारे देश में माता-पिता देवी-देवता के रूप में पूजे जाते रहे हैं।

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