मुनि दिनेशकुमार ने क्षमापना से संबंधित गीत का संगान किया। तेरापंथी सभा के मंत्री विमल चिप्पड़, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष रमेशचन्द बोहरा, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष भरत मरलेचा, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्षा कमला गेलड़ा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष दिनेश धोका, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष सुरेश बोहरा, आवास व्यवस्था के संयोजक पुखराज बड़ोला, भोजन व्यवस्था के संयोजक विनोद डांगरा, जैन तेरापंथ वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष देवराज आच्छा व आचार्य महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-चेन्नई के अध्यक्ष धर्मचंद लुंकड़ ने आचार्य से खमतखामणा कर आशीर्वाद प्राप्त किया। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा, मुख्य नियोजिका, साध्वीवर्या और मुख्यमुनि ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्य से खमतखामणा की। इसके उपरान्त साधु-साध्वियों ने आपस में खमतखामणा की। पूरे दिन भर खमतखामणा का दौर चलता रहा।
आत्म विकास का मार्ग है जप
चेन्नई. एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि भारतीय संस्कृति में उपासना का विशेष महत्व है। सभी धर्मों की उपासना पद्धति अलग-अलग है। परन्तु सरलतम उपाय है जप करना। आत्म विकास की साधना का नाम है जप। ज का अर्थ है जन्म-मरण का विच्छेद करना, प का अर्थ है पवित्र बनना। कोई अरिहंत का जाप करता है तो कोई राम राम का। कोई अल्लाह अकबर का। हिंदु धर्म में गायत्री मंत्र का, बौद्ध धर्म में त्रिशरण मंत्र का और जैन धर्म में नमस्कार मंत्र का महत्व है। महामंत्र का चौदह पूर्व का सार है। जिसका पहला अक्षर णमो यानि नरक से निकलकर मोक्ष की यात्रा करना है। जप दो प्रकार के होते हैं। वाचिक जप और मानसिक जप। दोनों आत्म उत्थान के लिए उपयोगी हैं। साध्वी ने कहा कि जप और तप का संबंध दूध और पानी सा नहीं बल्कि दूध और बादाम सा है।