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चेन्नई

नियमों के प्रति जागरूक रहने का हो प्रयास

चारित्रात्माओं और गृहस्थों को भी इसके प्रति जागरूक रहना चाहिए : आचार्य महाश्रमण

चेन्नईNov 17, 2018 / 05:40 pm

Santosh Tiwari

acharya mahasharman pravachan

नियमों के प्रति जागरूक रहने का हो प्रयास

चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा प्रतिलेखन मूल रूप से चारित्रात्माओं से संबंधित है। प्रतिलेखन अपनी वस्तुओं और उपकरणों का होता है। कहीं उपकरणों, वस्त्रों आदि में कोई जीव न रह जाए और अहिंसा महाव्रत की अनुपालना में कोई प्रमाद न हो जाए, इस कारण प्रतिलेखन करना होता है। प्रतिलेखन न करना भी साधना में बाधक होता है। प्रतिलेखन के कारण स्वाध्याय में भी बाधा आ सकती है इसलिए साधु को अल्पोपधि होना चाहिए। जितना कम उपकरण जितने कम वस्त्र होंगे, प्रतिलेखन में समय उतना ही कम लगेगा। प्रतिलेखन समय पर होना चाहिए। इसके प्रति उपयुक्त जागरूकता रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिलेखन व प्रमार्जन साधुचर्या का अभिन्न अंग है।

साधु को अपनी साधना पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिक्रमण बहुत ही सुन्दर कार्य है। चारित्रात्माओं और गृहस्थों को भी इसके प्रति जागरूक रहना चाहिए। यह आत्मा की शुद्धि और निर्मलता के बहुत ही आवश्यक है। स्वयं से स्वयं का निरीक्षण हो तो आत्मा और निर्मल बन सकती है। छल, कपट से गलत कार्यों को छिपाने का नहीं बल्कि उसका प्रायश्चित्त लेकर अपनी आत्मा का शोधन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने साधुओं से कहा लोगों को अपने-अपने नियमों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। पूर्ण जागरूकता के साथ उसका सम्यक् अनुपालन करने का प्रयास हो तो आदमी के जीवन में अच्छा विकास हो सकता है।

जैन विद्याश्रम में महाश्रमण विंग का उद्घाटन

चेन्नई. पूझल स्थित जैन विद्याश्रम में आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में महाश्रमण विंग का उद्घाटन हुआ। दो विंग में से एक विंग का उद्घाटन सुरजीबाई नथमल डागा परिवार की ओर से मदनलाल डागा ने और दूसरी विंग का उद्घाटन मैनाबाई जुगराज डागा परिवार की ओर से गणपतराज डागा द्वारा किया गया।

इस अवसर पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि आर्हत् वांगमय में शास्त्रकार ने पांच ऐसे कारण बताए हैं जिनके होने से आदमी शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान प्राप्ति के पांच बाधक तत्वों में पहला तत्व अंहकार है। विद्यार्थियों के लिए अपेक्षित है कि अंहकार न करें और विनय भाव रखें। विनय विद्या का श्रृंगार है। आचार्य ने कहा जैन विद्याश्रम में जैन धर्म की जानकारी, भगवान महावीर के सिद्धांत, पर्युषण आदि की जानकारी भी विद्यार्थियों को दी जाती होगी। नशा मुक्ति का प्रयास हो। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति से विद्यार्थियों का अच्छा विकास हो सकेगा। सभी बच्चों को तीनों आयामों के प्रत्याख्यान करवाए ग। मुनि अनेकांतकुमार ने त्रिआयामों को तमिल भाषा में बच्चों को समझाया।

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