दरअसल परंपरागत प्रणाली के तहत अंग को संरक्षित रखने के लिए बर्फ के ठंडे बक्से में उसका भंडारण करना पड़ता है, लिवर के लिए तो ऐसा 8-10 घंटे तक करना पड़ता है लेकिन इस नई प्रणाली के तहत मशीन यकृत को शरीर के लिए अपेक्षित तापमान पर बनाए रखते हुए उसे आक्सीजनयुक्त रक्त, दवाएं एवं अन्य पोषक तत्व प्रदान करता रहता है। यह लिवर को शरीर के बाहर भी 24 घंटे तक स्वस्थ रखता है।
गौरतलब है कि यकृत की प्रतीक्षा में बैठे लगभग 20 प्रतिशत रोगियों की मौत उपयुक्त अंगों की कमी के कारण हो जाती है।
अस्पताल ने बताया कि इस नई तकनीक के माध्यम से लिवर सिरोसिस से जूझ रहे एस. राजेंद्रन नामक 66 साल के मरीज के शरीर में यकृत का सफल प्रत्यारोपण किया गया है। अपोलो लिवर ट्रांसप्लांट इंस्टीट्यूट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मोहम्मद नईम ने बताया कि इस नई तकनीक ने हास्पिटल खर्च को काफी कम कर दिया है। डॉ. अनिल विद्या नामक एक अन्य लिवर सर्जन ने बताया कि इस प्रणाली से लिवर को 8-10 घंटे की तुलना में 24 घंटे तक स्वस्थ रखा जा सकता है।
विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रेरक कार्यक्रम
यहां स्थित फिशरीज कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट में मौजूदा सत्र के बीएफएससी प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के लिए गुरुवार को एक प्रेरक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गौरतलब है कि शैक्षणिक सत्र 2018-19 के लिए प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले नए विद्यार्थियों की कक्षाएं गत 8 सितंबर से शुरू हो चुकी हैं।
इस कार्यक्रम का आयोजन इन नए विद्यार्थियों को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करने को किया गया था। कार्यक्रम के प्रेरक वक्ता पर्लसिटी एकेडमी ऑन लीडरशिप एंड मैनेजमेंट स्किल के संस्थापक निदेशक डी. सेंदिलकन्नन थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता फिशरीज कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट तुत्तुकुड़ी के डीन डॉ. जी. सुकुमार ने की। इस विशेष कार्यक्रम ने मौजूदा बैच के 60 विद्यार्थियों ने भाग लिया। धन्यवाद कार्यक्रम संयोजक पी. गणेशन न ज्ञापित किया।