चेन्नई

एआईएडीएमके-डीएमके की पहली ‘अग्निपरीक्षा’

39 सीटों के साथ केंद्र में बनने वाली सरकार के लिए हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे तमिलनाडु में इस बार दोनों अहम क्षेत्रीय पार्टियां, एआईएमडीएमके और डीएमके अपने प्रमुख नेता (जयललिता और करुणानिधि) के बिना चुनावी मैदान में हैं।

चेन्नईApr 17, 2019 / 04:09 pm

PURUSHOTTAM REDDY

चेन्नई.
39 सीटों के साथ केंद्र में बनने वाली सरकार के लिए हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे तमिलनाडु में इस बार दोनों अहम क्षेत्रीय पार्टियां, एआईएमडीएमके और डीएमके अपने प्रमुख नेता (जयललिता और करुणानिधि) के बिना चुनावी मैदान में हैं। ऐसे में 2019 लोकसभा चुनाव की लड़ाई दोनों ही पार्टियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इस चुनाव में जीत से काफी हद तक दोनों ही पार्टियों का भविष्य भी तय होना है। इसके अलावा राजनीति में नए महारथी टीटीवी दिनकरण और अभिनेता से नेता बने कमल हासन की भी चुनौती दोनों पार्टियों के सामने है।
बता दें कि एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता और डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि के बाद पहली बार सूबे में लोग लोकसभा चुनाव के लिए मतदान करेंगे। सीएम ई.पलनीस्वामी (एआईएडीएमके) और डीएमके नेता एमके स्टालिन के लिए यह चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं है। दोनों ही नेताओं को सूबे के लोगों और पार्टी के भीतर अपने नेतृत्व को मजबूती से रखने के लिए इस परीक्षा में पास होना बेहद जरूरी है।
तमिलनाडु की राजनीति की बात करें तो यहां एक तरफ बीजेपी और एआईडीएमके का गठबंधन है तो दूसरी तरफ डीएमके और कांग्रेस साथ हैं। डीएमके सूबे में सत्ता विरोधी लहर और बीजेपी खासकर पीएम मोदी को टारगेट कर सत्ता में वापसी की राह देख रही है। उधर, सत्तारूढ़ एआईएडीएमके भ्रष्टाचार के मुद्दे पर डीएमके को घेरने की तैयारी में है।
बीजेपी के एक बड़े नेता कहते हैं, केंद्र ने तमिलनाडु के लिए पिछले 5 वर्षों में कई बड़ी योजनाएं दी हैं। सूबे के विकास के लिए बीजेपी सरकार प्रतिबद्ध है, ऐसे में हमें लगता है कि वोटर इस बात को समझेंगे। हालांकि मद्रास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राजीव मन्नीवनन कहते हैं, इस तरह की योजनाओं की बजाए बड़ी संख्या में यहां वोटर्स अपने नेता (करुणानिधि या जयललिता) को ध्यान में रखकर वोट करते हैं।
केंद्र और राज्य के खिलाफ 200 से अधिक आंदोलन
पिछले तीन वर्षों में यहां केद्र और सूबे की सरकार के खिलाफ 200 से अधिक आंदोलन हो चुके हैं। विभिन्न मुद्दों को लेकर एआईएडीएमके के खिलाफ लोग मुखर रहे हैं। डीएमके इसे अपने पक्ष में पाती है। स्थानीय बीजेपी नेता भी मानते हैं कि उनके पास राज्य में कोई बड़ा नेता नहीं है और मोदी जिनके भाषण प्रभाव डालते हैं, उनकी भाषा स्थानीय नहीं होने के कारण लोगों को उनसे जोड़ नहीं पाती है। यही वजह है कि बीजेपी यहां 39 में से सिर्फ 5 सीट पर ही चुनाव लड़ रही है।
ओबीसी वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश
बीजेपी तमिलनाडु में खुद या गठबंधन में शामिल पार्टियों के सहयोग से यहां बड़ी जीत के लिए ओबीसी वोटरों को अपने साथ लाने के प्रयास में जुटी है। उधर, कमल हासन जैसे नए प्रतिद्वंद्वी खेल को यहां और रोचक बनाने में जुटे हैं।
स्टालिन का भविष्य
करुणानिधि के नहीं होने के बाद पहली बार डीएमके नेता एमके स्टालिन की सबसे बड़ी परीक्षा है। इस परीक्षा से उनका भविष्य भी तय होना है। निश्चित रूप से लोग उनकी तुलना करुणानिधि से करेंगे और चुनावों में अपेक्षाएं भी उसी अनुरूप होंगी। ऐसे में सत्तारूढ़ एआईएडीएमके और बीजेपी के तोड़ के लिए स्टालिन क्या रणनीति अपनाते हैं और उसमें कितने सफल होते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा।
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