यह मामला पूर्व सांसद के. एन. रामचंद्रन से जुड़ा है जो कण्णम्माल शिक्षण ट्रस्ट के ट्रस्टी है। इस ट्रस्ट में उनका बेटा आर. राजशेखर भी शामिल है। राजशेखर ने बैंक प्रबंधक आर. त्यागराजन के साथ मिलीभगत कर २०१३ में १७.२८ करोड़ रुपए उधार लिए। यह कर्जा ट्रस्ट के शिक्षण संस्थान परिसर में नए कैम्पस निर्माण के लिए लिया गया था। लेकिन इस राशि का उपयोग अन्य उद्देश्य के लिए हुआ। इस वजह से पूरा खाता बिगड़ा और बैंक को देय ब्याज व मूल भी नहीं चुकाई गई।
बैंक ने अंदरुनी जांच में पाया कि मैनेजर यह कर्जा स्वीकृत कराने में दोषी था। फिर मामले की तहकीकात सीबीआइ की भ्रष्टाचारारोधी इकाई ने २०१६ में प्राथमिकी दर्ज कर शुरू की। ट्रायल में तीनों आरोपियों ने पूरे वित्तीय व्यवहार को वैधानिक बताया।
सुनवाई के दौरान सीबीआइ के विशेष लोक अभियोजक ने कोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश किए जो राजशेखर व बैंक मैनेजर के बीच संबंध स्थापित करते थे। ये साक्ष्य होटल में कमरों की बुकिंग के थे जिनका खर्च करीब २.५३ लाख रुपए था। बचाव पक्ष के वकील ने स्पेशल कोर्ट से कहा कि ट्रस्ट के खाते बराबर है और बैंक को देय ब्याज और मूल भी चुकता किया जा चुका है। लेकिन जज लिंगेश्वरन ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया।
जज ने फैसले में कहा कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि को जनसेवा करनी चाहिए न कि अधिकारियों से सांठ-गांठ कर भ्रष्टाचार में लिप्त होना चाहिए। ट्रायल पूरी होने के बाद जज ने त्यागराजन को ५ साल व १३.१० लाख रुपए के जुर्माने, पूर्व सांसद और पुत्र को ७-७ साल व १.११ करोड़ के जुर्माने की सजा सुनाई। कोर्ट ने कण्णम्माल शिक्षण ट्रस्ट जो इस मामले से जुड़ी है को १५.२० करोड़ रुपए के भुगतान का आदेश दिया है।