अण्णा विश्वविद्यालय एवं उससे सम्बद्ध महाविद्यालयों में इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में भगवद् गीता को शामिल किए जाने के बाद विवाद की स्थिति पैदा हो गई है। विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कई महाविद्यालय इसे लागू करना चाहते है तो कुछ विरोध में हैं।
विवाद बढऩे के बाद यूनिवर्सिटी के अधिकारियों का कहना है कि भगवद गीता का कोर्स अनिवार्य नहीं है और यह सिर्फ फिलॉसफी विषय का एक हिस्सा है। छात्र भारतीय संविधान जैसे व?िषयों की तरह ही इसे भी चुन सकते हैं।
शुरूआत यहां से हुई
विश्वविद्यालय अपने अंडर ग्रेजुएट इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए भगवद गीता को ऑडिट कोर्स यानी कि नॉन-कम्पल्सरी कोर्स के रूप में इंट्रोड्यूस करने जा रही है। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के मॉडल पाठ्यक्रम के अनुसार, अण्णा यूनिवर्सिटी ने जीवन विकास कौशल के माध्यम से व्यक्तित्व विकास सहित छह ऑडिट पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। पर्सनालिटी डेवेलपमेंट के लिए यूनिवर्सिटी ने स्वामी स्वरूपानंद द्वारा लिखी गई श्रीमद भगवद गीता की रचना को चुना है।
विकल्प जरूर होना चाहिए
विश्वविद्यालय के कुलपति एमके सुरप्पा ने कहा कि मैं सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अपने सहकर्मियों से कहूंगा कि वहां विकल्प जरूर होना चाहिए। हम जल्द ही इसमें संशोधन करेंगे। विश्वविद्यालय ने बीटेक-एमटेक विद्यार्थियों को दर्शनशास्त्र पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर ली है।
दर्शनशास्त्रियों की सामग्री शामिल
इसके उद्देश्य में बताया गया है कि भारत और पाश्चात्य परंपराओं का तुलनात्मक दर्शन पढ़ाकर विद्यार्थियों के भीतर एक नई समझ पैदा की जाएगी। सिलेबस को पांच यूनिट में बांटा गया है। चौथी यूनिट में श्रीमद् भागवत गीता का जिक्र किया गया है।
शीर्षक है- नॉलेज एज पावर/ओपरेशन यानी शक्ति और उत्पीडऩ का ज्ञान। इसके संक्षेप में लिखा गया है, शक्ति: गीता में आत्म बोध के रूप में। कृष्ण की अर्जुन को सलाह कि कैसे मन को जीतें। इसके अलावा भी कई दर्शनशास्त्र पढ़ाने के लिए देश और दुनिया के कई महान दर्शनशास्त्रियों की सामग्री शामिल की गई है।
कहीं समर्थन तो कहीं विरोध
जहां कुछ जानकारों का कहना है कि गीता का ज्ञान छात्रों के व्यक्तित्व विकास और जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार होगा। वहीं, दूसरे फैकल्टी मेंबर्स का कहना है कि कॉलेज में ‘भगवद गीता’ को अकेले पढ़ाया जाना, हिन्दू धर्म को थोपने जैसा है। आदर्श स्थिति ये होगी कि यूनिवर्सिटी में सभी दार्शनिक किताबों को पढ़ाया जाए।
डीएमके ने उठाए सवाल
दूसरी ओर डीएमके और वामपंथी पार्टियां राज्य द्वारा संचालित यूनिवर्सिटी, अण्ण यूनिवर्सिटी के फैसले का विरोध कर रही हैं। डीएमके अध्यक्ष स्टालिन ने यूनिवर्सिटी के फैसले पर कहा है कि ये संस्कृत को थोपना की कोशिश है। वहीं माकपा ने भी इसका विरोध किया है। कई संगठनों ने इसे हिन्दू धर्म को थोपने की कोशिश भी कहा है।