दूसरे दिन भगवान सूर्य की पूजा होती है और मीठा पोंगल उनको भेंट किया जाता है। तीसरा दिन पशुओं की देखभाल, पूजा तथा उनकी सेवाओं को मनाने के लिए होता है। मवेशियों को मोती, घंटी, अनाज, और फूलों की माला से सजाया जाता है और इसके बाद उनके मालिक और स्थानीय ग्रामीण उनकी पूजा करते हैं। माट्टू पोंगल के दिन ही ब्राह्मण परिवारों में भाइयों की सुख-समृद्धि की कामना लिए चावल की विविध किस्मों और मीठे पोंगल की भेंट केले के पत्ते पर रखकर चढ़ाई जाती है जिसे कणुपुड़ी रखना कहा जाता है। पोंगल के अंतिम दिन को काणुम कहते हैं। सभी परिवार एक हल्दी के पत्ते को धोकर इसे जमीन पर बिछाते हैं और इस पर एक दिन पहले का बचा हुआ मीठा पोंगल रखते हैं। वे गन्ना और केला भी शामिल करते हैं।