कल गुरु गुणगान के रूप में मनाई जाएगी प्रवर्तक पन्नालाल की जन्म जयंती
चेन्नईPublished: Sep 10, 2018 09:30:13 pm
साध्वी कुमुदलता व अन्य साध्वीवृन्द के सान्निध्य एवं श्री गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में १२ सितम्बर को 8.30 बजे से अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में प्रवर्तक पन्नालाल की १३१वीं जन्म जयंती मनाई जाएगी।
कल गुरु गुणगान के रूप में मनाई जाएगी प्रवर्तक पन्नालाल की जन्म जयंती
चेन्नई. साध्वी कुमुदलता व अन्य साध्वीवृन्द के सान्निध्य एवं श्री गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में १२ सितम्बर को 8.30 बजे से अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में प्रवर्तक पन्नालाल की १३१वीं जन्म जयंती मनाई जाएगी। सामयिक के साथ गुरु गुणगान के स्वरूप मनाई जाने वाली इस जन्म जयंती की तैयारियों में समिति के चेयरमैन सुनील खेतपालिया, संघसंरक्षक माणकचंद खाबिया, अध्यक्ष पवनकुमार कोचेटा, महामंत्री हस्तीमल खटोड़, कार्याध्यक्ष जवाहरलाल नाहर, उपाध्यक्ष महावीर सिसोदिया, कोषाध्यक्ष सुरेशचंद डूंगरवाल, सह-कोषाध्यक्ष गौतमचंद ओसवाल सहित अन्य पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता जुटे हैं।
प्रवचन के विषय प्राचीन और अर्वाचीन नारी पर सोमवार को उद्बोधन देते हुए साध्वी कुमुदलता ने कहा कि पर्वाधिराज पर्यूषण का पांचवां दिन नारी शक्ति को समर्पित है। भगवान महावीर ने अपने शासन में पुरुषों के समान दर्जा नारी को दिया है। नारी को संसार का सार कहा गया है। नारी से ही राम कृष्ण, हनुमान, महावीर, तीर्थंकरों का जन्म हुआ है। पहले तीर्थंकर को जन्म देने वाली मां मरूदेवी भी नारी ही थी। जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है।
साध्वी ने कहा कि आज की महिलाएं भौतिकता की चकाचौंध में अपनी संस्कृति और अपने धर्म की अनदेखी कर पश्चिमी संस्कृति में ढ़लने लगी हैं। अतीत में हमारी संस्कृति संयुक्त परिवार की होती थी लेकिन आज यह संस्कृति विलुप्त होती जा रही है। अगर एक सास बहू को अपनी बेटी और बहू सास को अपनी मां के समान की प्यार और सम्मान दे तो घर में प्रेम का वातावरण बन जाएगा। घर को स्वर्ग या नरक बनाने में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन महिलाएं अगर स्वभाव में जीने को संकल्प लें तो जीवन सार्थक हो जाएगा। नारी खुद की परिभाषा समझे और दूसरी नारी का सम्मान करे। अपनी संस्कृति, अपने धर्म और अपने किरदार की गरिमा बनाए रखें।
साध्वी महाप्रज्ञा ने कहा कि नारी अबला नहीं सबला है लेकिन आज की नारी फैशन और पश्चिमी सभ्यता के वशीभूत है। हमारी संस्कृति पूरब की है जहां उगते सूरज को नमन किया जाता है जबकि पाश्चात्य संस्कृति पश्चिम की है और डूबते सूरज को कभी नमन नहीं किया जाता।