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चेन्नई

आदर्श कानूनी पेशे में हैं ‘काली भेड़ें – मद्रास हाईकोर्ट

यह दुख का विषय है कि इस आदर्श पेशे में याची की जैसी काली भेड़ें भी हैं। इस वजह से अच्छे अधिवक्ताओं की छवि भी हाशिये पर आ जाती है।

चेन्नईFeb 26, 2020 / 08:05 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

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चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि तमिलनाडु में कुछ अधिवक्ताओं की करतूतों की वजह से कानूनी पेशा न केवल गंभीर रूप से आलोचनाओं का शिकार हो रहा है बल्कि जनता में इसकी प्रतिष्ठा भी घटती जा रही है। इस विचार के साथ न्यायालय ने वेलूर के एडवोकेट को निर्देश दिए कि इस आदेश की प्राप्ति के दो सप्ताह के भीतर वे उनको किराए पर दिए गए कक्ष को खाली कर दें।

एडवोकेट वी. के. कुमरेशन की याचिका पर न्यायाधीश एस. वैद्यनाथन ने उक्त आदेश दिए। याची ने कमरा खाली करने संबंधी उसके एक मामले की सुनवाई प्रधान अधीनस्थ कोर्ट वेलूर से रानीपेट कोर्ट करने की अर्जी लगाई थी।
याचिका को निरस्त करते हुए जज ने कहा जब भवन मालिक स्व उपयोग के लिए इसकी आवश्यकता जाहिर करता है तो किराएदार का फर्ज है कि वह जगह खाली कर दे। तमिलनाडु में मालिकान और किराएदारी कानून में हुए संशोधन के बाद तो किरायेदार के पास कोई हक नहीं है कि वह सम्पत्ति नहीं लौटाए।

मामले के अनुसार एडवोकेट वीके कुमरेशन को मकान मालिक जो कि डॉक्टर हैं, ने एक कमरा १८०० रुपए के मासिक भाड़े पर दिया। चूंकि किराएदार समय पर न किराया दे रहा था और न कमरे की सफाई रख रहा था तो मालिक ने इसे खाली करने के आदेश दिए। वकील के मना करने पर मकान मालिक ने २०१० में याचिका लगाई। फिर २०१५ में वेलूर की कोर्ट ने १.९४ लाख रुपए भुगतान के प्रतिवादी अधिवक्ता को निर्देश दिए।

अधिवक्ता ने फिर शपथपत्र पेश किया कि उसने सभी बकाया राशि का भुगतान कर दिया है। मकान मालिक ने एडवोकेट से कहा कि वह क्लिनिक लगाना चाहते हैं इसलिए जगह खाली करे। एडवोकेट ने इसके लिए मना कर दिया। फिर इस मामले की सुनवाई वेलूर सब कोर्ट से रानीपेट सब कोर्ट करने की मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की। पिछली सुनवाइयों में वादी ने दो बार अधिवक्ता बदल दिए।

ऐसे में जज एस. वैद्यनाथन ने जमीन मालिक के अधिवक्ता की जिरह सुनी तथा वादी के अधिवक्ता की अनुपस्थिति में दिए आदेश में कहा कि यह बात अस्वीकार्य है कि याची ने कोई गलती नहीं की है। उनका बकाया का भुगतान कर देना खुद को कानून का पालक साबित करने की कोशिश मात्र थी। लेकिन जगह खाली नहीं करने का उनका आचरण एक अधिवक्ता का नहीं हो सकता। यह दुख का विषय है कि इस आदर्श पेशे में याची की जैसी काली भेड़ें भी हैं। इस वजह से अच्छे अधिवक्ताओं की छवि भी हाशिये पर आ जाती है। याचिकाकर्ता का व्यक्तित्व विषैला है अगर उनको बार के अन्य सदस्यों के साथ रहने की अनुमति दी जाती है तो वे, दूध में एक बूंद जहर की तरह, पूरे पेशे को बर्बाद कर देंगे।
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