राज्य ने हाईकोर्ट को विश्वास दिलाया कि मंदिर के कुम्भाभिषेक को लेकर १९८० और १९९७ में जो रीतियां व परम्पराएं थी उनका अनुगमन किया जाएगा। सरकार का शपथपत्र स्वीकारते हुए न्यायाधीश एम. दुरैस्वामी और जज टी. रविंद्रन की न्यायिक पीठ ने ऐसे ही अन्य याचिकाओं को भी सुनवाई के लिए अनुमति देते हुए मामला २९ जनवरी के टाल दिया।
इस मंदिर के गुम्बद की परछाई कभी नहीं बनती
हाईकोर्ट में दो अन्य याचिकाएं भी दायर हुई थी। इन याचिकाओं में वादी का दावा था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की अनुमति के बगैर कुम्भाभिषेक आयोजित किया जा रहा है जिसे रोका जाना चाहिए। इन याचिकाओं पर सुनवाई के वक्त एएसआई के अधिवक्ता ने पेश होकर न्यायालय को जानकारी दी कि विभागीय सहमति दी जा चुकी है। एएसआई का जवाब दर्ज कर न्यायिक पीठ ने याचिकाओं को बंद कर दिया।