चेन्नई. मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारी स्कूलों में बच्चों को अंडे तथा बालिकाओं को सैनिटरी नैपकिन मुहैया कराएं। तमिलनाडु सरकार ने यह कहते हुए अंडे देने से मना कर दिया कि मौजूदा समय में फिजिकल डिस्टेंस की पालना कराना संभव नहीं है। सरकार के इस जवाब पर कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि अगर ऐसा है तो तस्माक की दुकानों को बन्द कराने का निर्णय क्यों नहीं लिया गया। न्यायाधीश एमएम सुन्दरेश व आर. हेमलता की पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। अधिवक्ता सुधा ने जनहित याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा कि महामारी के समय बच्चों को अंडे दिए जाएं ताकि उन्हें पोषण मिल सकें। मामला जब 31 जुलाई को सुनवाई के लिए आया था तब कोर्ट ने राज्य सरकार को सुझाव दिया था कि कोरोना वायरस के चलते लाकडाउन में स्कूलें बन्द हैं और ऐसे में मिड-डे-मील के तहत बच्चों को अंडे तथा बालिकाओं को सेनिटरी नैपकिन मुहैैया करवाएं। तब बेंच ने सुझाव दिया था कि शिक्षकों की मदद से बच्चों को अंडे वितरित किए जा सकते हैं। तब बेंच ने 3 अगस्त तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी थी। सप्ताह में एक या दो दिन दे दें जब सोमवार को मामला फिर सुनवाई के लिए आया तो सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को कहा कि मौजूदा समय में फिजिकल डिस्टेंस की पालना संभव नहीं है और ऐसे हालात में बच्चों को अंडे उपलब्ध कराना संभव नहीं हो सकता है। इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि यदि ऐसा हैं तो तस्माक की दुकानों को बन्द क्यों नहीं कर दिया जाता। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि सप्ताह में एक या दो दिन के लिए अंडे उपलब्ध कराए जाएं। सरकार यह तय करें कि अंडे किस तरह से उपलब्ध कराए जाएंगे। इस पर सरकारी अधिवक्ता ने तमिलनाडु के स्कूली शिक्षा विभाग से जवाब हासिल करने के लिए एक दिन का समय चाहा। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 4 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी। जब स्कूल चलती है तब तमिलनाडु सरकार की ओर से मिड-डे-मील एवं छात्राओं को सेनिटरी नैपकिन नि:शुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। लेकिन इन दिनों स्कूलें बन्द होने के कारण इसे रोक दिया गया है।