कार्ति के चार्टर्ड अकाउंटेंट एस. भास्कररमन फिलहाल सीबीआइ की हिरासत में हैं और संभावना है कि कार्ति का उनसे सामना हो सकता है। सीबीआइ ने इस मामले में 65,000 ईमेल बरामद किए हैं, जिन्हें सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। इसी तरह छापे के दौरान बरामद एक बिक्री विलेख भी मामले में महत्वपूर्ण माना जाता है। विलेख जोर बाग में खरीदी गई संपत्ति का है और इसकी पावर ऑफ अटॉर्नी भास्कररमन के नाम है, जबकि संपत्ति कार्ति और उनकी मां ने खरीदी थी।
प्राथमिकी के अनुसार, एक मनसा (पंजाब) स्थित निजी फर्म, तलवंडी साबो पावर लिमिटेड ने एक बिचौलिए की मदद ली और कथित तौर पर चीनी नागरिकों के लिए वीजा जारी करने के लिए 50 लाख रुपए का भुगतान किया, जो समय सीमा से पहले एक परियोजना को पूरा करने में फर्म की मदद करेगा।
सीबीआइ के एक अधिकारी ने कहा कि निजी फर्म एक 1,980 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया में थी, जिसके लिए काम एक चीनी कंपनी को आउटसोर्स किया गया था। परियोजना अपने समय से पीछे चल रही थी।
अधिकारी ने कहा कि उक्त उद्देश्य के लिए निजी कंपनी के प्रतिनिधि ने अपने करीबी सहयोगी के माध्यम से चेन्नई स्थित एक व्यक्ति से संपर्क किया और उसके बाद उन्होंने 263 परियोजना के पुन: उपयोग की अनुमति देकर वीजा सीलिंग के उद्देश्य को विफल करने के लिए एक बैक-डोर रणनीति तैयार की। उसी के अनुसरण में निजी कंपनी ने गृह मंत्रालय को एक पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें इस कंपनी को आवंटित परियोजना वीजा के पुन: उपयोग के लिए मंजूरी मांगी गई थी, जिसे एक महीने के भीतर मंजूरी दे दी गई और कंपनी को अनुमति जारी कर दी गई।
यह आरोप लगाया गया है कि वरिष्ठ चिदम्बरम ने नियमों की धज्जियां उड़ाकर चीनियों को वीजा दिलाने में मदद की थी।